देश के साथ पूरी दुनिया में धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति भारत में प्रखर हिन्दुत्ववादियों की बढ़ती हुई असहिष्णुता की ख़बरों के बीच पीएम मोदी की तरफ से यह संकेत दिए जाने का पूरा प्रयास किया जाने लगा है जिसमें वे खुद को देश के सभी धर्मों जातियों और वर्गों का नेता साबित करने के संकेत दे सकें. पिछले वर्ष देश में पहली बार संघ की राजनैतिक मंशा को पूरी करने के लिए बनाई गई भाजपा ने आम चुनावों में पूर्ण बहुमत से सत्ता संभाली थी जिसके बाद से भारत की छवि पूरी दुनिया में कुछ इस तरह से प्रचारित हुई है जैसे यहाँ पर धार्मिक अल्पसंख्यकों का जीना मुश्किल होता जा रहा है जबकि यह आधा सच ही है. साथ ही इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि देश में धार्मिक रूप से अधिक संवेदनशील और भाजपा की कमज़ोर पकड़ वाले हिंदी भाषी उत्तर भारतीय राज्यों में भी लोकसभा चुनावों में जीत अर्जित करने के बाद भाजपा और मोदी सरकार पर इन राज्यों की सत्ता भी हासिल करना एक बड़ा लक्ष्य ही रहा है जिसके लिए अब खुद नरेंद्र मोदी और अमित शाह इस वर्ष सबसे पहले पड़ने बिहार विधान सभा चुनावों के लिए कमर कसते हुए दिखाई दे रहे हैं जिसके लिए इन प्रखर हिन्दुत्ववादियों की आवश्यकता को मोदी-शाह बखूबी समझते हैं.
पिछले वर्ष जिस काम करने वाली सरकार की छवि के साथ मोदी ने प्रचार किया था अब कुछ बड़े विवादित मुद्दों पर उसकी ज़िद के चलते आज पार्टी और मोदी की स्वीकार्यता में कमी अवश्य ही आई है जिसके लिए अब भाजपा भी चिंतित नज़र आ रही है. अपने को देश के सभी धर्मों से जोड़ने की कोशिश में पीएम पहले केरल भाजपा की पहल पर वहां के ईसाई समुदाय के बड़े धार्मिक व्यक्तियों से मिल चुके हैं और इसके बाद उनकी तरफ से भी इस तरह के बयान सामने आ रहे हैं कि सरकार और भाजपा अब अल्पसंख्यकों के भरोसे को मोदी सरकार के प्रति बढ़ाना चाहती है और अब इस क्रम में केंद्रीय मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी के माध्यम से अज़मेर में प्रसिद्द दरगाह पर पीएम की तरफ से चादर चढाने के प्रयास को उसी कड़ी में प्रगति के रूप में देखा जा रहा है. खुद मुख़्तार अब्बास का यह कहना कि यह चादर किसी भी तरह से अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण नहीं वरन उनके विश्वास को बढ़ाने की दिशा में किया जाने वाला एक प्रयास मात्र ही है जिसके लिए पीएम संकल्पित हैं तो यह एक तरह से विपक्षियों को खुद पर हमला करने देने के एक अवसर के रूप में ही अधिक दिखाई देता है क्योंकि एक समय भाजपा विपक्षी दलों के इस तरह के प्रयासों को अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण कहकर ही सम्बोधित करती रही है,
देश के सभी वर्गों के प्रति यदि सरकार चला रहे लोगों की तरफ से सौजन्यतावश इस तरह के काम किये जाए तो उससे केवल यही सन्देश जाता है कि सरकार सभी धर्मों का सम्मान करती है पर पिछले कुछ दशकों से संघ के प्रभाव में चलने वाली भाजपा इस तरह के हर प्रयास का भद्दा उपहास उड़ाती हुई अन्य दलों पर तीखे हमले किया करती थी. अब सरकार में आने के बाद उस समय का तुष्टिकरण आज विश्वास बहाली के रूप में नया अवतार ले चुका है तो क्या भाजपा में से कोई इस बात के लिए माफ़ी मांगने की हिम्मत दिखायेगा कि पहले जो उन्होंने किया वह सब राजनैतिक शोशेबाजी से अधिक कुछ भी नहीं था और अगर भाजपा का वह स्टैंड तब सही था तो आज भाजपा इस मुद्दे पर चुप्पी लगाकर क्यों बैठी हुई है ? मोदी सरकार की जो भी उपलब्धियां रही हों पर उसकी एक बहुत बड़ी कमज़ोरी सामने आ चुकी है कि वह कट्टर हिंदुत्व के रास्ते पर चलते हुए बयानबाज़ी करने वाले नेताओं, सांसदों, महंतों और साध्वियों पर किसी भी तरह की रोकथाम नहीं कर पायी है इसलिए अब उसके पास पूरी दुनिया को दिखाने के लिए यही एकमात्र रास्ता बचा हुआ है क्योंकि विदेशों में भारतीय उच्चायोगों और खुद पीएम को भी इस तरह के तीखे सवालों और सलाहों का सामना करना ही पड़ता है जिसकी कोई ज़रुरत नहीं होती.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
पिछले वर्ष जिस काम करने वाली सरकार की छवि के साथ मोदी ने प्रचार किया था अब कुछ बड़े विवादित मुद्दों पर उसकी ज़िद के चलते आज पार्टी और मोदी की स्वीकार्यता में कमी अवश्य ही आई है जिसके लिए अब भाजपा भी चिंतित नज़र आ रही है. अपने को देश के सभी धर्मों से जोड़ने की कोशिश में पीएम पहले केरल भाजपा की पहल पर वहां के ईसाई समुदाय के बड़े धार्मिक व्यक्तियों से मिल चुके हैं और इसके बाद उनकी तरफ से भी इस तरह के बयान सामने आ रहे हैं कि सरकार और भाजपा अब अल्पसंख्यकों के भरोसे को मोदी सरकार के प्रति बढ़ाना चाहती है और अब इस क्रम में केंद्रीय मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी के माध्यम से अज़मेर में प्रसिद्द दरगाह पर पीएम की तरफ से चादर चढाने के प्रयास को उसी कड़ी में प्रगति के रूप में देखा जा रहा है. खुद मुख़्तार अब्बास का यह कहना कि यह चादर किसी भी तरह से अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण नहीं वरन उनके विश्वास को बढ़ाने की दिशा में किया जाने वाला एक प्रयास मात्र ही है जिसके लिए पीएम संकल्पित हैं तो यह एक तरह से विपक्षियों को खुद पर हमला करने देने के एक अवसर के रूप में ही अधिक दिखाई देता है क्योंकि एक समय भाजपा विपक्षी दलों के इस तरह के प्रयासों को अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण कहकर ही सम्बोधित करती रही है,
देश के सभी वर्गों के प्रति यदि सरकार चला रहे लोगों की तरफ से सौजन्यतावश इस तरह के काम किये जाए तो उससे केवल यही सन्देश जाता है कि सरकार सभी धर्मों का सम्मान करती है पर पिछले कुछ दशकों से संघ के प्रभाव में चलने वाली भाजपा इस तरह के हर प्रयास का भद्दा उपहास उड़ाती हुई अन्य दलों पर तीखे हमले किया करती थी. अब सरकार में आने के बाद उस समय का तुष्टिकरण आज विश्वास बहाली के रूप में नया अवतार ले चुका है तो क्या भाजपा में से कोई इस बात के लिए माफ़ी मांगने की हिम्मत दिखायेगा कि पहले जो उन्होंने किया वह सब राजनैतिक शोशेबाजी से अधिक कुछ भी नहीं था और अगर भाजपा का वह स्टैंड तब सही था तो आज भाजपा इस मुद्दे पर चुप्पी लगाकर क्यों बैठी हुई है ? मोदी सरकार की जो भी उपलब्धियां रही हों पर उसकी एक बहुत बड़ी कमज़ोरी सामने आ चुकी है कि वह कट्टर हिंदुत्व के रास्ते पर चलते हुए बयानबाज़ी करने वाले नेताओं, सांसदों, महंतों और साध्वियों पर किसी भी तरह की रोकथाम नहीं कर पायी है इसलिए अब उसके पास पूरी दुनिया को दिखाने के लिए यही एकमात्र रास्ता बचा हुआ है क्योंकि विदेशों में भारतीय उच्चायोगों और खुद पीएम को भी इस तरह के तीखे सवालों और सलाहों का सामना करना ही पड़ता है जिसकी कोई ज़रुरत नहीं होती.
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