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रविवार, 26 अप्रैल 2015

भूकम्प और अफवाहें

                                                          नेपाल के लामजुंग में केंद्रित होकर आये भूकम्प के बाद जिस तरह से वहां व्यापक स्तर पर तबाही दिखाई दे रही है वह अपने आप में विचलित करने वाली है क्योंकि आज विज्ञान की इतनी प्रगति के बाद भी हम इस बात का पता लगा पाने में अभी भी पूरी तरह से असफल ही हैं कि आखिर भूकम्प कब और किस क्षेत्र में आएगा ? आधुनिक तकनीक और बढ़ती वैज्ञानिक दक्षता के बाद अब हम इस बात तक ही पहुँच पाये हैं जिसमें कम से कम यह पता चल जाता है कि भूकम्प के लिए खतरे वाले किस क्षेत्र में भूकम्प की सम्भावनाएं बढ़ गयी हैं क्योंकि आज वैज्ञानिकों ने अध्ययन करके इस बात को जानने तक सफलता पा ली है कि किस स्थिति में भूकम्प आ सकता है फिर भी आज तक यह बता पाना संभव नहीं हो पाया है किस क्षेत्र विशेष में ही भूकम्प आने की संभावनाएं अधिक बन रही हैं. वैज्ञानिकों द्वारा हिमालयी क्षेत्र में एक बड़े भूकम्प की आशंका पिछले तीन महीनों से व्यक्त की जा रही थी अब यह भूकम्प उसी का परिणाम है या अभी और भी किसी बड़े भूकम्प की सम्भावना बची हुई है यह बता पाने में कोई भी सक्षम नहीं है. इस तरह की किसी भी स्थिति में नागरिकों को ही खुद इस बात के लिए तैयार होने की आवश्यकता है जिससे वे बाहरी सहायता आने तक अपने गांव शहर या मोहल्ले की सुरक्षा और बचाव में तेज़ी से लग सकें.
                                              आज दुनिया जिस तरह से इंटरनेट पर बहुत अधिक सक्रिय है तो उस स्थिति में हम सब की यह ज़िम्मेदारी बन जाती है जिसमें किसी भी तरह की अफवाह को फैलने से पूरी तरह से रोका जाये जबकि दुर्भाग्य से हम भारतीय इस तरह की किसी भी परिस्थिति में उन ख़बरों पर अपनी प्रतिक्रिया देना शुरू कर देते हैं जिनका कोई आधार नहीं हुआ करता है. कल के भूकम्प के बाद जिस तरह से एक बार फिर से अफवाह का तंत्र अपने काम में जुटा हुआ दिखाई दिया वह पढ़े लिखे समाज के लिए बहुत ही दुर्भाग्य का विषय है क्योंकि जब तक हम इन मुद्दों पर सचेत होकर सही खबरों पर भरोसा करने के बारे में नहीं सोचेंगें तब तक किसी भी परिस्थिति में भय के माहौल को पूरी तरह से बदला नहीं जा सकता है. कल भूकम्प के बाद जिस तरह से हमारे टीवी चॅनेल्स पर लगातार यह खबरें इस तरह से प्रसारित की जाने लगीं कि वैज्ञानिकों ने और भी बड़े भूकम्प की चेतवानी दी है और कुछ जगहों पर उसका समय भी बताया जाने लगा तो उससे पूरी तरह से अराजकता ही फैलने की स्थिति आ गयी थी. हिमालयी क्षेत्र भूकम्प की दृष्टि से दुनिया का सबसे संवेदनशील माना जाता है और यहाँ पर लगातार आने वाले भूकम्पों का आमतौर पर इस तरह से पता ही नहीं चलता क्योंकि उनकी तीव्रता का स्तर और अवधि बहुत कम हुआ करती है फिर भी इसकी इस तरह से चेतावनी जारी करने वालों के खिलाफ कार्यवाही करने के बारे में सोचा जाना चाहिए.
                                     भारतीय परिदृश्य में हमारे सबके पास फ़ोन है और सभी अपने स्तर से जानने की कोशिशें शुरू कर देते हैं कि आने वाले समय में अब क्या होने वाला है और इसी क्रम में बिना किसी खबर की पुष्टि किये अधिकांश लोग ऐसे संदेशों को जानकारी के तौर पर अपने परिजनों तक पहुँचाने लगते हैं जो कि अपने आप में केवल अफवाहों पर ही आधारित होते हैं. भूकम्प या इस तरह की किसी भी अन्य परिस्थिति में जब तक पक्की सूचना न हो हम सभी को इनको आगे बढ़ाने से रोकना चाहिए और अपने मित्रों या परिजनों में से कोई इस तरह के संदशों को आगे बढ़ाने का काम करने में लगा हुआ हो तो उसे भी तुरंत इस तरह की जानकारी देते हुए इन अफवाहों से बचने की सलाह देनी चाहिए. इस तरह के भूगर्भीय प्राकृतिक परिवर्तन से होने वाले विनाश को तो सीधे तौर पर नहीं रोका जा सकता है पर हमारे थोड़े से सचेत होने से अन्य प्रभावित लोगों को सहायता मिलने में तेज़ी के स्तर तक ज़िम्मेदार अधिकारियों/ कर्मचारियों को आसानी अवश्य ही हो सकती है. जब तक कोई अपना ही आपदाग्रस्त क्षेत्र में न हो तब तक फ़ोन का इस्तेमाल न करें और जानकारी मिलने के तुरंत बाद ही फ़ोन को दोबारा से अन्य लोगों को यह बात अनावश्यक रूप से बताने से बचें यदि आपको अपने किसी परिचित के बारे में सही सूचना मिल गयी है तो खुद ही सोशल मीडिया पर उसे तुरंत पोस्ट कर दें जिससे अन्य लोग उस व्यक्ति से संपर्क करने से बच सकें. ऐसी परिस्थिति में फ़ोन के अनावश्यक उपयोग से उन लोगों को जानकारी हासिल करने में दिक्कत हो सकती है जिनके फ़ोन अधिक ट्रैफिक के कारण लग नहीं रहे हैं हमारे परिचित सुरक्षित है तो अन्य लोगों को भी यह जाने का अवसर देना चाहिए जिससे सभी को सही जानकारी मिल सके. साथ ही नेट चलने की स्थिति में प्रभावित क्षेत्र का कोई एक व्यक्ति अपनी कुशलता का समाचार सोशल मीडिया पर डाल सकता है और उस से जुड़े हुए सभी लोग उसी में टिप्पणी करते हुए अपनी कुशलता का समाचार देते रह सकते हैं इससे जहाँ फ़ोन लाइन्स को खाली रखने में मदद मिल पायेगी वहीं सभी को सही जानकारी भी मिलती रहेगी.
ऐसी परिस्थिति में सरकारें जो कुछ भी कर सकती है वह करने का पूरा प्रयास करती है पर कई बार उसकी तैयारियों पर हमारी नासमझी भारी पड़ जाया करती है जिससे भी प्रभावितों तक सही समय से राहत नहीं पहुँच पाती है.
                                     
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