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मंगलवार, 30 अगस्त 2016

एलपीजी सब्सिडी

                                                  देश में लंबे समय से राजनीति का मुद्दा बनी रहने वाली पेट्रोलियम पदार्थों की सब्सिडी से देश को वास्तव में कितना नुकसान या फायदा हुआ है इस बात के आंकड़े देने में मंत्रालय के स्तर से जिस तरह से हीला हवाली की जा रही है वह कहीं न कहीं से इस पूरी व्यवस्था में कुछ अनियमितता होने के संदेह उत्पन्न करती है. संपन्न लोगों से अपनी सब्सिडी गरीबों के हित में छोड़ने की खुद पीएम की अपील का कितना असर हुआ है यह भी बयानों में उलझ हुआ आधा सच ही अधिक लगता है क्योंकि मंत्रालय इन बातों को सूचना के अधिकार के तहत सार्वजनिक करने से कतराता हुआ ही अधिक दिखाई देता है. पूर्ण बहुमत से सत्ता में बैठी हुई भाजपा के सांसदों समेत कुल कितने सांसदों ने सब्सिडी का त्याग किया है इसका कोई आंकड़ा मंत्रालय के पास नहीं है और आज के डिजिटल युग में जिस तरह से मंत्रालय यह कह रहा है कि उसके पास लोगों के पद नाम के अनुसार कोई सूची नहीं होती है तो निश्चित तौर पर वह बहुत कुछ छिपाने कि कोशिश भी कर रहा है क्योंकि आज अधिकांश लोगों के एलपीजी कनेक्शन आधार से जुड़े हुए हैं या फिर बैंकों के माध्यम से उन्हें सब्सिडी दी जा रही है इस स्थिति में सांसदों के मामले में सूचनाएँ जुटाना मंत्रालय के लिए कोई मुश्किल काम नहीं है.
                             सरकार की मंशा के अनुरूप सभी दलों के कितने सांसदों ने इस सुविधा का स्वेच्छा से त्याग कर दिया है यदि यह जानकारी जनता के सामने तक आये तो लोगों को इस तरह से सब्सिडी छोड़ने के लिए प्रेरित भी किया जा सकता है पर दुर्भाग्य से किसी अनदेखे दबाव को मानते हुए आज मंत्रालय इस बात को अनदेखा कर जाता है. सांसदों में केवल भाजपा के ही सांसद नहीं आते हैं इसलिए सभी दलों के सांसदों को इस बारे में खुद ही पहल करनी चाहिए और जिन लोगों ने सब्सिडी छोड़ दी है उनको धन्यवाद दिया जाना चाहिए तथा जिन लोगों ने अभी तक सब्सिडी नहीं छोड़ी है उनको अपने गृह जनपद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके वहीं पर सब्सिडी त्यागने की औपचारिकताएं पुरी कर उसे छोड़ने के बारे में सन्देश देना चाहिए. जब तक सांसद, विधायक और मंत्री के साथ अधिकारियों को इस तरह की सुविधा छोड़ने के लिए राज़ी नहीं किया जायेगा तब तक इस पूरी प्रक्रिया को दुरुस्त भी नहीं किया जा सकता है. खुद पीएम मोदी के नेतृत्व में शुरू की गयी उज्जवला योजना के अंतर्गत भी इसी तरह की आंकड़ेबाज़ी सामने आ रही यही और मंत्रालय ने अब तक साढ़े तेरह लाख लोगों को इस यह सुविधा देने में सफलता पायी है.
                             यदि पीएम लालकिले से यह घोषणा करते हैं कि उनके आह्वाहन पर एक करोड़ लोगों ने सब्सिडी छोड़ दी है तो उनमें से कितने राज्यों के राजनेताओं और केंद्रीय मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने भी रूचि दिखाई है यह जानना भी आवश्यक हो जाता है. स्वेच्छा से अपील करने पर जब हमारे सांसद, विधायक और मंत्रीगण भी पीएम की अपील की इस तरह से अनदेखी कर जाते हैं तो उनसे और क्या आशा की जा सकती है ? केवल गैस ही नहीं इन माननीयों को हर स्तर पर हर तरह की सब्सिडी दी जाती है जिसका भुगतान जनता के पैसों से ही किया जाता है अच्छा हो कि पेट्रोलियम मंत्रालय खुद ही इस तरह का संशोधन कर दे कि किसी भी व्यक्ति के सांसद, विधायक, नगर निकाय, जिला पंचायत के अध्यक्ष या राजपत्रित अधिकारी बनने के साथ ही उसे हर तरह की सब्सिडी से वंचित कर दिया जाना चाहिए. देश में स्वेच्छा से मुफ्त की सेवा छोड़ने वालों की बहुत कमी है क्योंकि जब तक हमारे अंदर से वह सोच विकसित नहीं होगी कि संपन्न होने के कारण हम खुद ही पहल करें तो पीएम के आह्वाहन और हमारी तरफ से उसका सही उत्तर कभी भी देश की आवश्यकतओं के अनुरूप नहीं होगा.       
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