मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 2 जून 2018

गैर भाजपाई गठबंधन

                                                          संसद में सबसे अधिक सदस्यों को भेजने वाले यूपी में विपक्षी तालमेल के चलते भाजपा को जिस तरह से लगातार भाजपा विरोधी वोटों के लामबंद होने से उपचुनावों में हार का मुंह देखना पड़ रहा है उससे आश्चर्यचकित होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि भाजपा की मोदी सरकार भी पता नहीं क्यों अटल सरकार की तरह पुनः आत्ममुग्धता का शिकार होती जा रही है ?  भाजपा के सामने २००४ का उदाहरण बहुत पुराना नहीं हुआ है फिर भी उसकी तरफ से जिस तरह से एक प्रचारवादी अभियान चलाया जाने लगा है वह कई बार धरातल की वास्तविकताओं से मेल नहीं खाता है जो उसके साथ पहली और पिछली बार चुनावों में जुड़े उन तटस्थ मतदाताओं को उससे दूर करने का काम करता है जिसके दम पर उसे लोकसभा में स्पष्ट बहुमत मिला था। मोदी शाह और भाजपा को यह समझना ही होगा कि आज उनको राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की विकल्पहीनता का लाभ अधिक मिल रहा है और यदि किसी मज़बूत एजेंडे पर विपक्षी दल एकजुट होते हैं तो २०१९ का चुनाव भाजपा के लिए एक दुःस्वप्न भी बन सकता है जहाँ कम अंतर से हारने वाले उसके सांसदों की संख्या बहुत अधिक रह सकती है.
                       विपक्ष में जिस तरह से हर बड़े नेता की आकांक्षा पीएम बनने की तरफ जाती हुई दिखाई देती है उसे किसी भी स्तर पर गलत नहीं कहा जा सकता है क्योंकि हर राजनीतिज्ञ के लिए आगे बढ़ना एक बड़ा सपना होता है और वह किसी भी परिस्थिति में अपने को आगे बढ़ाना भी चाहता है. जब एक बड़ी चुनौती के रूप में मोदी विपक्ष के सामने हैं तो उनसे निपटने के लिए अपनी तात्कालिक विरोध को दरकिनार कर अगर यूपी में माया मुलायम अजीत और कांग्रेस ने समझदारी से सीटों का बंटवारा कर लिया तो भाजपा के लिए बहुत बड़ी चुनौती सामने आ सकती है जहाँ तक यह कहा जा रहा है कि यह बेमेल गठबंधन अधिक समय तक नहीं चल पायेगा तो यह भी संभव है कि अंतर्विरोधों के चलते गठबंधन दो साल भी न चल पाए पर उसके बीच में आकर सत्ता सँभालने से भाजपा के लिए बहुत समस्या हो सकती है क्योंकि आज मोदी शाह की जिताऊ जोड़ी की तानशाही संघ से लगाकर पार्टी के हर स्तर पर नेताओं द्वारा महसूस की जा रही है पर सत्ता हाथ से जाते ही क्या भाजपा के महत्वाकांक्षी नेता इन पर हमला नहीं करने लगेंगें ? आज जो दबी जबान से सुनाई देता है वह कल खुलेआम दिखाई भी दे सकता है जिससे खुद भाजपा की संभावनाओं पर असर पड़ने से इंकार नहीं किया जा सकता है.
                         परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों पर अब राहुल गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस को खुद को साबित करने का अंतिम अवसर मिला हुआ है और जिस तरह से अपने वजूद के लिए संघर्ष करती हुई कांग्रेस ने अहमद पटेल के चुनाव के बाद से हर मोर्चे पर लड़ने की इच्छा दिखाई है उससे उनके हताश कार्यकर्ताओं का मनोबल भी मज़बूत हुआ है. राहुल गाँधी के पास अभी बहुत समय है और इस सच्चाई को वह समझ रहे हैं यह उनके और कांग्रेस के लिए अच्छी बात है क्योंकि देवेगौड़ा सरकार से समर्थन वापस लेने और गुजराल सरकार को समर्थन देने की राजनीति करने वाली कांग्रेस में पिछले २२ सालों में बहुत कुछ बदल चुका है. विपक्ष के पास भी अधिक समय नहीं है क्योंकि मोदी सरकार में जिस तरह से संगठित तरीके से विपक्षी नेताओं को देशविरोधी साबित करने की कोशिश की जा रही है वह किसी से भी छिपी नहीं है और यदि यह परिस्थिति २०२४ तक बनी रही तो देश के ताने बाने में बहुत कुछ बदल सकता है. कौन पीएम होगा और कौन नहीं इस बात पर विचार करना अभी जल्दबाज़ी होगी क्योंकि जब तक भाजपा की संख्या को २०० तक सीमित करने में विपक्षी दल सफल नहीं होंगें तब तक नेताओं के चयन की कोई बात कम नहीं करने वाली है राज्यों में मज़बूत दलों को अपने राज्य में खुद के लिए अधिक और कांग्रेस के लिए कम सीटें छोड़ने और केंद्र में कांग्रेस के लिए अधिक सीटें छोड़ने जैसे किसी सम्मानजनक स्तर पर बात करनी होगी तभी २०१९ में उनके लिए कुछ संभव होगा वर्ना मोदी अपनी पूरी ताकत झोंक कर एक और आजम चुनाव को अपने पक्ष में मोड़ने के लिए तैयारी करने में व्यस्त हो चुके है.    
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