देश में राजनीति किस हद तक गिर सकती है यह पिछले और इस महीने में हम सभी ने देख ही लिया है. लगता है कि देश की कुंडली में "म " प्रभाव दिखा रहा है. पहले मार्क्सवादी फिर ममता और अब माया..... लगता है की इन लोगों ने अपनी आँखें मूँद ली हैं तभी तो इन सभी को यह भी नहीं पता चल पता है की वे किसका और क्यों विरोध कर रहे हैं ? लोकतंत्र का दुर्भाग्य आज सर चढ़ कर बोल रहा है. चीन के लोग अमेरिका के साथ हैं तो ठीक हैं पर अपने वामपंथियों को भारत के साथ जाने में दिक्कत है. ममता को विकास चाहिए पर राजनीति के साथ और अब माया को खल रहा है कि राहुल एक दलित के घर कैसे जा सकते हैं ? और इसका खामियाजा विकास को भुगतना पड़ता है. नेताओं चेत जाओ कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी ये चालें जनता को ठीक न लगें और तुम्हें अपनी औकात पता चल जाए. शांत रायबरेली में हिंसा कि चिंगारी भड़काकर माया को क्या मिला ये तो सब जानते हैं पर अब शायद उनके दल के लोग भी मुंह चुराते दिखे कि जनता को क्या उत्तर दिया जाए.
कब तक आख़िर कब तक इन सड़े हुए नेताओं को देश झेलेगा ? क्यों चुप हो देश वालों ? आगे आओ और सोचो कि ये घटिया नेता हमें किस ओर ले जा रहे हैं ?
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