मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 13 दिसंबर 2009

समय पर न्याय नहीं ?

मुख्या न्यायाधीश न्यायमूर्ति के जी बालाकृष्णन ने एक बार फिर कहा है कि देश में मुक़दमों कि संख्या के अनुसार कोर्ट नहीं हैं जिससे न्याय मिलने में देरी होती है। उन्होंने निचली अदालतों में मुक़दमों में लगने वाले समय के बारे में कहा कि अधिक देरी होने पर लोग विद्रोह भी कर सकते हैं जो कि देश और न्यायपालिका के लिए ठीक नहीं होगा। यह सही है कि देश में अभी निचली अदालतों कि संख्या १६००० है जिसे बढ़ाकर ३५००० किए जाने कि तुरंत आवश्यकता है। जनता का विश्वास अभी भी न्यायालय पर है और उसे लगता है कि उसे देर सवेर न्याय अवश्य मिलेगा। देश की निचले स्तर की अदालतों कि संख्या १६००० है जिसमें भी २००० पद रिक्त चल रहे हैं। इस तरह की व्यवस्था में किस तरह से सभी को समय पर न्याय दिया जा सकता है ? काम के अधिक बोझ के कारण बहुत सारे मुक़दमें सालों तक केवल प्राथमिक स्तर पर ही चलते रहते हैं। यह पहली बार है कि देश के प्रधान न्यायाधीश हर जगह से इस बात पर ज़ोर देते हैं कि किसी भी हालत में निचली अदालतों कि संख्या को बढ़ाया जाना चाहिए जिससे लोगों को त्वरित और सही तरह से न्याय मिल सके। यह काम रातों रात तो नहीं किया जा सकता है इसके लिए चरण बद्ध तरीके से काम किए जाने की आवश्यकता होगी। किसी स्तर पर प्रयास तो किया ही जाना चाहिए जिन राज्यों या जनपदों में मुक़दमों कि संख्या बहुत अधिक हो वहां पर इसे करके देखा जाना चाहिए और उसके परिणामों पर विचार कर इसे पूरे देश में लागू किए जाने के बारे में सोचा जाना चाहिए। देश में जल्द ही इस समस्या से निपटने का मार्ग ढूँढा जाना चाहिए क्योंकि आने वाले समय में यदि पुराने मुक़दमें ही नहीं निपटे तो नए आने वाले मुक़दमों को किस तरह से निपटाया जा सकेगा ?

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