मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 18 जून 2010

बीएसएनएल और हड़ताल

जिस तरह से बीएसएनएल के कर्मचारी हड़ताल कर रहे हैं उसको देखते हुए अब सरकार के लिए यह आवश्यक हो चुका है कि वह आईटीएस अधिकारीयों के दबाव को दर किनार करके अब वास्तव में इस निगम के बारे में सोचना शुरू कर दे और जल्दी से जल्दी कुछ ऐसा प्रबंध करे कि कभी देश की शान माना जाने वाला यह विभाग और अब निगम दम न तोड़ दे. देश में सरकारी बाबूगिरी ने पता नहीं कितनी ऐसी संस्थाओं और निगमों का भट्ठा बैठा दिया है कि जिनके बिना कभी देश होने की कल्पना भी नहीं कर सकता था. आज चंद आईटीएस अधिकारीयों के मनमाने रवैये के कारण हो सकता है कि बहुत जल्दी ही बीएसएनएल एक इतिहास बन जाये.
       सन २००० में जब इसका निगमीकरण किया गया था तो सरकार की दलील थी कि इससे विभाग के कर्मचारियों को बेहतर ढंग से काम करने के अवसर मिलेंगें और सरकार का भी फायदा होगा. पर इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी निगम केवल घाटे की तरफ ही जाता दिखाई दे रहा है. क्या कारण है कि इसमें काम करने वाले कर्मचारी आज बहुत असंतुष्ट हैं ? सबसे बड़ी कमी यह है कि विभाग से निगम बनने के समय आईटीएस अधिकारियों को विभाग में बने रहने या फिर निगम में जाने का विकल्प दिया गया था पर उस समय इन्हीं अधिकारियों का विभाग पर कब्ज़ा था तो इन्होंने अपने लाभ के लिए निगम में अधिकार तो ले लिए पर जब बात निगम में जाने की हुई तो इन्होंने जुगाड़ करके अपने को विभाग का कर्मचारी ही बनाये रखा. आज स्थिति यह है कि अन्य सभी कर्मचारी निगम के हैं तो केवल उच्च अधिकारी ही विभाग के हैं. यह स्थिति तो वैसी ही हो गयी जैसी कभी ईस्ट इंडिया कम्पनी की थी. जो अँगरेज़ अफसर ब्रिटेन के लिए काम करते थे वे भारत के लोगों के लिए किसी भी तरह से जवाबदेह नहीं थे ? इन आईटीएस अधिकारियों का यही है कि वेतन तो ये निगम से ले रहे हैं पर इसके प्रति वे किसी भी तरह से ज़िम्मेदार नहीं हैं वे जब भी चाहें अपने मूल विभाग में जा सकते हैं.
      जब किसी को भी काम करने के लिए इतनी अच्छी स्थिति मिल जाएगी तो कोई क्यों अपनी स्थिति में बदलाव करना चाहेगा ? आज भी समय है कि इन अधिकारियों से पूछ कर इनको अंतिम समय सीमा निर्धारित कर निगम में काम करने दिया जाए और यदि वे निगम में नहीं जाना चाहते हैं तो इनको विभाग के कोई अन्य कार्य सौंप कर विभाग में ही बनाये रखा जाये तथा निगम की गतिविधियों से दूर रखा जाये. आज निगम की हालत इतनी खस्ता हो चुकी है कि यह मांग की जाने लगी है कि ३ जी और ब्राड बैंड के लिए वह अपने हिस्से के पैसे जमा करने की हालत में नहीं है इसलिए उसे इसमें छूट दी जाये. ख़राब सेवाओं के कारण लोग इससे किनारा करते दिखाई दे रहे हैं. अब भी समय है कि लाखों कर्मचारियों के भविष्य को देखते हुए सरकार को तुरंत निर्णय लेना चाहिए और इसको बीमार होने से बचाने की पूरी कोशिश भी करनी चाहिए.   

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