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सोमवार, 17 सितंबर 2012

साइबर सर्विलांस और आज़ादी

                राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिव शंकर मेनन की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में सरकार ने सैद्धांतिक रूप से यह निर्णय ले लिया है कि देश में एक साइबर सर्विलांस सेल की स्थापना की जाये जिससे इन्टरनेट और सोशल मीडिया के द्वारा फैलने वाली किसी भी विद्वेषपूर्ण और भ्रामक ख़बर या अफ़वाह का समय रहते पता लगाया जा सके. यह सही है कि जिस तरह से देश में विभिन्न मुद्दों पर अचानक ही माहौल गरमा जाता है और उसके बाद वह अराजकता की शक्ल में सामने आने लगता है उस परिस्थिति में सरकार के पास कोई ऐसा तंत्र होना बहुत आवश्यक है जिससे वह यह देख सके कि किस तरह से सोशल मीडिया की आज़ादी के नाम पर सामाजिक विद्वेष फैलाया जा रहा है. जिस तरह से देश के सामने आतंकी हमलों का ख़तरा हमेशा ही बना रहता है उस स्थिति में किसी संगठित रूप से किये जाने वाले हमले के बारे में भी सुराग जुटाने के लिए आज कोई मज़बूत तंत्र देश में नहीं है जिससे कई बार परेशानी का सामना सभी को करना पड़ता है. पिछले महीने जिस तरह से बर्मा और असोम के बारे में भ्रामक ख़बरें फैलाकर इसी सोशल मीडिया और इन्टरनेट के माध्यम से पूरे देश में मुस्लिम की तरफ़ से पूर्वोत्तर के लोगों के ख़िलाफ़ माहौल बनाया गया उससे घिनौना सोशल मीडिया का स्वरुप आज तक नहीं देखा गया था.
         सरकार के इस निगरानी तंत्र के बारे में अब बहुत सारे आज़ादी के पक्षधर सामने आ जायेंगें और सरकार पर आपातकालीन उपाय करने के आरोप लगाने लगेंगे पर आज की परिस्थितियों को देखते हुए अब यह बहुत आवश्यक हो गया है कि देश में किसी भी तरह की अफ़वाह फ़ैलाने के लिए कम से कम सोशल मीडिया का दुरूपयोग करने की स्थिति में सरकार के पास उस पर नज़र रखने के लिए कोई व्यवस्था अवश्य हो. सरकार विरोधियों का यह तर्क भी बिलकुल जायज़ है कि आने वाले समय में सरकार इसका दुरूपयोग भी कर सकती है पर ऐसे देखा जाये तो हर कानून के दुरूपयोग की सम्भावना हमेशा ही बनी रहती है और उस स्थिति के लिए हमारा पूरे राजनैतिक शासन तंत्र ज़िम्मेदार है उसके लिए किसी भी कानून को किस तरह से दोषी ठहराया जा सकता है ? हर घर में सब्जी काटने के लिए चाकू, गैस जलाने के लिए माचिस होती है जिनका दुरूपयोग किसी की हत्या और आग लगाने के लिए भी किया जा सकता है तो क्या यह कहा जाना चाहिए कि इन वस्तुओं का दुरूपयोग होनी की संभावनाओं के चलते इन्हें घरों में रखने पर ही प्रतिबन्ध लगा दिया जाना चाहिए ? अब देश के नागरिकों और नेताओं को ज़िम्मेदार होने की ज़रुरत है क्योंकि एक सभ्य और सामाजिक वातावरण बनाये रखने के लिए शक़ के स्थान पर अब भरोसे को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और यह पूरे देश का कर्तव्य है इसकी ज़िम्मेदारी किसी व्यक्ति, समूह, सरकार या संगठन पर नहीं डाली जा सकती है.
        हर सुविधा के दो पहलू होते हैं और जिनसे बहुत सारे लोगों को निरंतर लाभ भी मिलता है आज के समय में इन्टरनेट एक ऐसा माध्यम बन चुका है कि इससे जिंदगी की तेज़ रफ़्तार में लोगों के बहुत सारे काम इसी से होने लगे हैं दूर बैठे हुए परिवार या मित्रों से पल भर में ही यह संबंधों में गर्मी बनाये रखने की ताक़त रखता है पर इसके साथ ही बहुत सारे ऐसे लोग और संगठन हैं जिनके द्वारा इसका जमकर दुरूपयोग किया जा रहा है. आज के समय में आतंकी भी इसका दुरूपयोग करते हैं अमेरिका में सख्ती के साथ इन्टरनेट पर नज़र रखी जाती है पर साथ ही इसका दुरूपयोग नहीं किया जाता है क्योंकि वहां पर आम नागरिक कोई भी क़दम उठाने से पहले देश के बारे में सोचना जानता है. देश में इस तरह के बहुत सारे कानून पहले से ही अस्तित्व में हैं पर इस नए कानून के लिए इतने प्रशिक्षित लोगों को सरकार कहाँ से लाएगी और अगर वे मिल भी गए तो इस बात की क्या संभावनाएं हैं कि वे अपने काम को करने में पूरी ईमानदारी बरतेंगें ? देश को अब देश से जुड़े मुद्दों पर समर्पित लोगों की आवश्यकता है अब उन लोगों की इस तरह के ढांचे में कोई ज़रुरत नहीं है जो केवल सरकारी नौकरी करने के लिए ही कहीं भी पहुँच जाते हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार इस तरह के किसी भी तंत्र का किसी भी परिस्थिति में दुरूपयोग नहीं करेगी और इससे प्रभावित होने वाले लोग भी इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमले के स्थान पर इसे देश की आवश्यकता में उठाया गया क़दम ही मानेंगें.     
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