मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 6 जनवरी 2013

२ जी से बदतर ३ जी

                      देश में जिस तरह से बेहतर सुविधाओं के नाम पर जोर शोर से चालू की गयी ३ जी मोबाइल सेवा के बारे में रोज़ ही नयी नयी शिकायतें सामने आ रही हैं उससे यही लगता है कि कम्पनियां केवल नाम भर को ही ये सेवाएं दे पा रही हैं और उसके बाद भी उनके पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिसके माध्यम से वे इस सेवा की गुणवत्ता सुधार सकें. आम तौर पर भारतीय अपने एक उपभोक्ता के रूप में मिले हुए अधिकारों के प्रति बहुत उदासीन रहा करते हैं और इस मामले में ये सभी सेवा प्रदाता इस बात का भरपूर लाभ भी उठा रहे हैं ? आज अब जब पूरी दुनिया में नयी और बेहतर तकनीक के माध्यम से ये सेवाएं देने की बातें की जा रही हैं तो हमारे देश में कहीं से भी ऐसा नहीं लगता है कि अब हम आगे बढ़कर किसी भी तरह से विश्व स्तरीय सेवाएं अपने आप देने में विश्वास रखते हैं ? आख़िर क्या कारण है कि उपभोक्ता भी इन घटिया सेवाओं के बारे में कुछ् कहना नहीं चाहता है और कम्पनियां अपनी मनमानी शर्तों पर सब कुछ करने में लगी हुई हैं ? हमें उपभोक्ता की इस आदत और कम्पनियों के शोषण पर कुछ न कुछ तो अब करना ही होगा.
         देश में सबसे पहले विश्व के साथ बिना मतलब की होड़ बंद होनी चाहिए क्योंकि आम लोगों को पता नहीं क्या लगता है कि किसी सेवा के अगले दौर में बढ़ जाने के बाद पता नहीं कौन सा अलादीन का चिराग़ सबके हाथों में आने वाला है और जो पूरी तरह से संचार क्षेत्र को बदलकर रख देगा. जबकि वास्तविकता यह है कि कम्पनियां कहती कुछ और हैं और करती कुछ और हैं जिस कारण से भी आज देश में किसी सेवा प्रदाता को विश्व स्तरीय नहीं कहा जा सकता है जबकि देश में कई विश्वस्तरीय सेवा दे सकने में सक्षम कम्पनियां अपने व्यापार को बढ़ाने में लगी हुई हैं. इस मामले में सरकार को भी ट्राई के माध्यम से इन कम्पनियों पर कड़ी नज़र रखने की कोशिश करनी ही होगी क्योंकि आज के समय में जिस तरह से ये सभी अपना काम करने में लगे हुए हैं उस स्थति में यह अपने आप सुधरने वाले नहीं हैं. देश की सबसे बड़ी राजनैतिक समस्या भी यही है कि अगर सरकार इनके कामों की समीक्षा करने लगती है तो ये चिल्लाने लगते हैं कि उन्हें काम ही नहीं करने दिया जा रहा है जबकि आज के वैश्विक परिदृश्य में भारत में सबसे अनुकूल परिस्थितियां सभी के लिए उपलब्ध हैं.
        आम उपभाक्ताओं की शिकायतों को सुनने के लिए कोई ऐसा मंच अवश्य बनाया जाना चाहिए जो समयबद्ध तरीके से पूरी शिकायतों को कम्पनियों के अनुसार डील करने में सक्षम हो जिससे हर कम्पनी के उपभोक्ता को समय से सही जानकारी और अन्य सुविधाएँ मिल सकें. देश में निरंतर बढ़ रहे उपभोक्ताओं के बीच अब कम्पनियों पर कुछ ऐसा दबाव तो होना ही चाहिए जिससे आम उपभोक्ता के हितों का संरक्षण किया जा सके. केवल सरकारी चाबुक चलाने से भी सारा सीन बदला नहीं जा सकता है अब इन कम्पनियों को भी स्वेच्छा से इस तरह के क़दम उठाने के बारे में सोचना होगा क्योंकि आने वाले समय में यदि उपभोक्ताओं को नयी और बेहतर सेवाओं के नाम पर यदि केवल लूटने का ही काम किया जाता रहेगा तो पूरे मोबाइल क्षेत्र पर ही प्रश्न चिन्ह लग जायेगा ? अब भी सही समय है कि कम्पनियां भले ही नयी से नयी तकनीक न दे पायें पर कम से कम उपभोक्ताओं को उतना तो दे ही सकें जिसके लिए वे पैसे दे रहे हैं. आज भी गुणवत्ता में अच्छी होने के बाद भी सरकारी क्षेत्र की कम्पनियों में बाज़ार के साथ चलने की संस्कृति नहीं आ पाई है जिस कारण से भी ये कम्पनियाँ अच्छी सेवाएं देने के बाद भी ख़राब सेवा प्रदाताओं में आती हैं जबकि आज भी इनके यहाँ पर उपभोक्ताओं को जब तक सेवा चलती है वह सब कुछ मिलता है जिसके बारे में वे कहती हैं. सरकार को भी इसमें कोर्पोरेट कल्चर लाने का प्रयास करना चाहिए जिससे कम से कम इनके दबाव के कारण ही कुछ कम्पनियां अच्छा काम कर सकें.       
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