मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 9 जनवरी 2013

पाक सेना का बर्बर रूप

                          पाकिस्तान की सेना ने एक बार फिर से अपनी घिनौनी हरकतों के चलते भारत को सोचने को मजबूर कर दिया है कि क्या पाक इस लायक भी है कि उसके साथ किसी भी तरह के कोई सम्बन्ध रखे जाएँ ? कश्मीर में सीमा पर जिस तरह से गश्त कर रहे जवानों पर पिछले कुछ दिनों से पाक सेना अकारण ही हमले करके अपने आतंकियों को घुसपैठ करवाने का प्रयास कर रही है और लगातार उसमें उसे मुंह की खानी पड़ रही है उस स्थिति में उसकी हताशा का यह स्वरुप सामने आ रहा है कि उसने गश्त पर निकले हुए जवानों को शहीद कर उनका सर काटने की हरकत की है. सीमा पर गश्त एक सामान्य प्रक्रिया है और जिस तरह से पाक के साथ लगी सीमा पर हमेशा ही तनाव बना रहता है उसे देखते हुए इस तरह के तनाव बढ़ाने वाले कामों करके पाक सेना क्या संदेश देना चाहती है ? एक तरफ़ भारत के साथ रिश्तों को मज़बूत करने का ढोंग रचाया जाता है वहीं दूसरी तरफ़ इस तरह से उन जवानों को निशाना बनाया जाता है जो सामान्य रूप से अपनी ड्यूटी करने में लगे हुए हैं क्या पाक इस तरह की हरकतें करके अपनी उस घटिया भारत विरोध वाली मानसिकता की पुष्टि नहीं करती हैं जिसके लिए आज आम भारतीय उसे शक़ की नज़रों से देखता है ?
          इस परिस्थिति के बाद भारत को एक बार फिर से अपनी स्थिति पर पुनर्विचार करने की ज़रुरत क्योंकि आख़िर कब तक भारत पाक की इस तरह की हरकतों को बर्दाश्त करता रहेगा ? एक सबसे ज़रूरी बात जो करनी चाहिए पाक के साथ किसी भी तरह के किसी भी खेल को दुनिया के किसी भी मंच पर खेलने से मना कर दिया जाना चाहिए जब हम दशकों तक दक्षिण अफ्रीका और इसराइल के ख़िलाफ़ इसलिए खेलने से मना करते रहे कि वे अपने यहाँ पर रंगभेद ख़त्म करने और बराबरी का दर्ज़ा देने में आगे नहीं आ रहे हैं तो पाक से हमारा क्या अटक रहा है जिस कारण से हम उसके साथ हर तरह के खेल हर जगह पर खेलें ही ? यदि कभी कुछ ऐसा होता है कि किसी विश्व स्तरीय प्रतिस्पर्धा में हम पाक के सामने हों तो हमें वाही नीति अपनानी चाहिए जो किसी समय दक्षिण अफ्रीका और इसराइल के ख़िलाफ़ अपनाई जाती थी. जब हम दूसरों के दर्द में इतने डूब सकते हैं कि खेलों का बहिष्कार कर दें तो अब तो हमारे निर्दोष जवानों की जान पर इस तरह से हमले किये जा रहे हैं और उन्हें शहीद होने के बाद इंसानियत को भूलकर उनके शवों के साथ ऐसी हरकतें की जा रही हैं तो हम आख़िर चुप क्यों हैं ?
           देश के उन जवानों से कोई भी खेल आगे नहीं हो सकता है क्योंकि खेल से जिस खेल भावना और सद्भावना की लम्बी लम्बी बातें टीवी के सामने की जाती हैं उसके ख़त्म होने के ४८ घंटे के भीतर ही सैनिकों के साथ इस तरह के बर्ताव को किस तरह से बर्दाश्त किया जा सकता है ? नेताओं में यह दम नहीं बचा होगा कि वे खुलकर इस मसले पर बोलें पर जिस दिन जनता जाग गयी तो पाक के समर्थन में बातें करने वाले इन नेताओं के लिए पहचान का भी संकट खड़ा हो जायेगा ? अच्छा हो कि जन भावनाओं का सम्मान किया जाये और केवल खेल के खेल में उलझकर उन शहीदों का अपमान न किया जाये जो पाक जैसे घटिया देश के साथ सीमा की सुरक्षा करते हुए शहीद हो जाते हैं ? राजनीति, कूटनीति, व्यापार और खेल अपनी जगह पर ही रहें तो ठीक है पर देश के सम्मान के साथ समझौता करके इस तरह के किसी भी झमेले को अब देश सहने वाला नहीं है. पाक को स्पष्ट रूप से यह बता दिया जाना चाहिए कि आतंकियों के समर्थन और उनके इस तरह से घुसपैठ कराने में जब तक पाक मदद करता रहेगा उसके १० साल बाद तक उसके साथ कोई भी सम्बन्ध नहीं रखा जायेगा क्योंकि जब तक इस मसले पर खुलकर नहीं चेताया जायेगा और ठोस क़दम नहीं उठाये जायेंगें तब तक शहीदों की शान में पाकिस्तान गुस्ताखी करता ही रहेगा.           
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

2 टिप्‍पणियां:

  1. पाकी दो सैनिक हते, इत नक्सल इक्कीस ।
    रविकर इन पर रीस है, उन पर दारुण रीस ।

    उन पर दारुण रीस, देह क्षत-विक्षत कर दी ।
    सो के सत्ताधीश, गुजारे घर में सर्दी ।

    बाह्य-व्यवस्था फेल, नहीं अन्दर भी बाकी ।
    सीमोलंघन खेल, बाज नहिं आते पाकी ।।

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  2. जितनी कमजोर ये सरकार है आज तक भारत देश में इतनी कमजोर नहीं रही ... पर फिर भी इस बार सत्ता आसीन होगी ...
    देश का भविष्य क्या होने वाला है ...

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