मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 14 अगस्त 2013

भारत-पाक नए रिश्ते, शरीफ की नज़र से

                                        पाकिस्तानी पीएम नवाज़ शरीफ़ ने जिस तरह से समाचार चैनल्स पर प्रसारित अपने संदेश में एक बार फिर से भारत के साथ पाक के रिश्तों को नए सिरे से सुधारने की नयी पहल करने की बात की है उसे कोई भी गंभीरता से नहीं लेने जा रहा है क्योंकि शरीफ़ की इस तरह की बयानबाज़ी को भारत सहित पूरी दुनिया में कोरी लफ्फाज़ी ही माना जाता है और इसके बाद भी वे बड़ी बेशर्मी के साथ इस बात को दोहराते रहते हैं कि नए रिश्ते बनाए जाने चाहिए ? नवाज़ इतने भी भोले नहीं है कि एक तरफ़ उनकी सरकार, सेना और पाकिस्तानी चरमपंथी यह कहने से नहीं चूकते हैं कि वे कश्मीरियों के प्रति अपनी हर तरह की सहायता जारी रखेंगे वहीं दूसरी तरफ़ समय समय पर उन्हें भारत के साथ अच्छे सम्बन्ध भी याद आते रहते हैं ? भारत में कश्मीर का मुद्दा आज जितना संवेदनशील हो चुका है उस स्थिति में भले ही पाक कितना भी समर्थन करता रहे पर उसके पास करने के लिए केवल आतंकी सोच ही है और उसके द्वारा उसने आम कश्मीरियों का जीना हराम किया हुआ है क्योंकि उसकी हर हरक़त कहीं न कहीं से आम कश्मीरियों की रोज़ी रोटी पर संकट ही खड़ा करती रहती है.
                                    शरीफ़ राजनीति के पुराने खिलाड़ी रहे हैं और उनके द्वारा इस तरह की बातें किया जाना अच्छा नहीं लगता है क्योंकि जब भी वे सत्ता सँभालते हैं तो पाक में बैठे हुए आतंकी समूह और सेना बे-काबू होने लगती हैं जिसका सीधा असर भारत के साथ उसके संबंधों पर ही पड़ा करता है. शांति के प्रवचन देना और वास्तविक रूप से शांति बहाली के प्रयास करना दो अलग अलग बातें हैं क्योंकि केवल बातें करके शांति नहीं लायी जा सकती है साथ ही अब यह पाक को तय करना है कि वह भारत के साथ कैसे सम्बन्ध चाहता है क्योंकि उसी के आने वाले क़दमों पर ही दोनों देशों के सम्बन्ध चलने वाले हैं. सबसे पहले पाक को सीमा पर स्थायी शांति के बारे में ठोस प्रयास करने ही होंगें और कश्मीरियों को हर तरह के सहयोग जैसे बयानों पर लगाम देनी ही होगी क्योंकि किसी भी परिस्थिति में शांति और विश्वासघात को अब भारत में बर्दाश्त नहीं किया जायेगा जिसका सीधा बुरा असर पाक पर कभी भी पड़ सकता है. भारत की अपनी प्राथमिकताएं हैं और उनको वह पाक के इस तरह के प्रयासों से रोकने का कोई प्रयास नहीं करने वाला है.
                                    शरीफ़ के दिल में कहीं इतनी शराफ़त में सिर्फ इसलिए ही तो नहीं आ गयी है कि भारतीय रक्षा मंत्री ए के एंटोनी ने इस बात को सार्वजनिक मंच से यह कह दिया है कि अब सीमा पर भारतीय सेना को परिस्थितियों के अनुसार हर हमले का जवाब देने के लिए पूरी तरह से छूट दे दी गयी है जिसके बाद से पाक के रवैये में अचानक ही इस तरह का बदलाव आया है और शरीफ़ तक को दुनिया के सामने शांति का रोना मजबूरी में ही सही पर रोना तो पड़ा है ? शरीफ़ भी जानते हैं कि ९९ के कारगिल युद्ध में लाभ की स्थिति में होने के बाद भी पाकिस्तानी सेना को सामरिक महत्व से कमज़ोर स्थान पर तैनात सेना से उलटे पैरों भागने को मजबूर कर दिया था और तब शरीफ़ को अपना चेहरा बचाने के लिए अमेरिका से गुहार लगानी पड़ी थी और सीमा पर शांति आ पाई थी ? भारतीय सेना की क्षमता से पाक अच्छी तरह से परिचित है पर जिस तरह से वह भारत की पहले हमला न करने की नीति का सदैव ही लाभ उठाया करता है उससे भारतीय पक्ष में उनके प्रति क्रोध ही बढ़ता है और अब जब भारतीय सेना की तरफ़ से कुछ भी करने की सूचना पाक को मिली है तभी से उनके हाथों में बंदूकों की जगह कबूतर नज़र आने लगे हैं ?         
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