मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 19 सितंबर 2013

पाकिस्तान और भारत ख़तरा कौन ?

                                        अमेरिकी उप रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर ने जिस तरह से नई दिल्ली में भारतीय नेताओं से अपनी बातचीत करने के बाद पाकिस्तान को यह नसीहत दी कि भारत उसके लिए बड़ा खतरा तो क्या कभी कोई ख़तरा नहीं बन सकता है और उसे भारत के साथ अपने संबंधों को और मज़बूत करने के साथ अपने यहाँ कट्टरपंथ पर लगाम लगानी चाहिए जिससे किसी भी परस्थिति में पाक खुद भी सुरक्षित रहे और भारत के साथ उसके सम्बन्ध अच्छे बने रहें. वैचारिक स्तर पर तो यह बात बहुत ही लुभावनी ही लगती है क्योंकि सब कुछ जानने के बाद भी जिस पाक के बिना अमेरिका का कोई बड़ा कदम नहीं उठा पाता है वहां के नेता भारत में आकर इस तरह का भाषण अक्सर ही दिया करते हैं जिससे धरातल पर कोई बदलाव नहीं दिखाई देता है. कहने को तो अमेरिका पाक को यह सीख दिया करता है पर जब उसे अपने हथियारों को बेचने का बाज़ार तलाशना पड़ता है तो पाक से अच्छा उसे दूसरा देश दिखाई ही नहीं देता है क्योंकि पाक को वह ये सभी हथियार एक समझौते के तहत देता है और उसके बदले उसकी ज़मीन का उपयोग भी करता है.
                                        पाक का वजूद ही भारत के विरोध पर टिका हुआ है क्योंकि यदि कल को वह भारत का विरोध करना बंद कर दे तो उसे जिहाद के नाम पर पूरी इस्लामी समुदाय से जो भी धन मिल रहा है वह अचानक से मिलना बंद हो जायेगा और साथ ही भारत के साथ सम्बन्ध मज़बूत हो जाने की दशा में उसे इतने अधिक हथियारों की आवश्यकता भी नहीं पड़ा करेगी जिससे वह एक बड़ी आर्थिक हानि में आ जायेगा क्योंकि इस धन को पाने के बाद वह इसे मनमाने तरीके से खर्च करता है और उसे इस धन में सबसे बड़ी खासियत यह भी लगती है कि इसका कोई भी हिसाब उसे किसी को भी नहीं देना पड़ता है क्योंकि धार्मिक कामों के लिए जुटाए गए धन के हर मामले में कोई भी दान के रुपयों के बारे में ज्यादा खोजबीन नहीं करता है ? पाक के मामले में यह मसला और भी सुरक्षित इसलिए भी हो जाता है क्योंकि जिहाद के नाम पर जो भी धन इकठ्ठा किया जाता है उसमें बहुत बड़ी मात्रा गुमनाम लोगों द्वारा ही दी जाती है और ज़ाहिर है कि वे कभी भी कोई हिसाब करने नहीं आने वाले हैं ?
                                         आज भी पाक द्वारा वैश्विक इस्लामी बिरादरी को जिस तरह से जिहाद के नाम पर बरगलाया जा रहा है और जो धन केवल जिहाद के नाम पर इकठ्ठा किया जाता है यदि उसका असली इस्तेमाल हथियारों की खरीद के स्थान पर पूरी दुनिया में मुसलमानों की बेहतरी के लिए लगाया जाता तो आज जिन इस्लामी देशों में मारकाट मची हुई है शायद वह भी नहीं होती और जो भी धन पहले विनाशकारी हथियार खरीदकर फिर पुनर्निर्माण में खर्च किया जाता है उसका भी सही दिशा में उपयोग हो पाता ? क्या आज तक किसी भी देश ने यह जाने की कोशिश की है कि अभी तक इस्लाम के नाम पर कितना धन इस तरह से आम लोगों को बर्बाद करने में खर्च किया गया है शायद यह किसी को भी नहीं मालूम है यदि आज अमेरिका पाक को इस तरह के उपदेश देने के स्थान पर मुसलमानों को आपस में लड़ाने की अपनी नीति को ही रोक दे तो पूरे इस्लामिक विश्व में शांति आने में देर नहीं लगेगी. भारत तो पाक के लिए कभी भी ख़तरा नहीं रहा है पर यदि बात सर से ऊपर जाती है तो फिर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने के लिए इस बार तो दुनिया पाक को ही संघर्ष करते हुए देखेगी.   
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