रविवार, 30 नवंबर 2008
अब तो कुछ बोलो...
मुंबई के इस सबक के बाद आज दिल्ली में हमारे नेता मिलकर रोने वाले हैं. मेरी समझ में नहीं आता की इस बैठक में क्या तय करने की कोशिश की जायेगी ? अब देश का नागरिक इन बैठकों से भी परेशान है. हमारी संसद पर हमला हुआ तो तुम्हारा पौरुष सोता रहा अब एक के बाद धमाके देख कर मगर मच्छ के आँसू इस देश को कुछ नहीं दे सकते. कुछ तो करने की कोशिश दिखाई दे तभी जनता भी तुम लोगों पर अपना भरोसा दिखायेगी. जनता तुमसे क्या मांगती है? तुम नौकरी पैसे लेकर देते हो, सड़के चलने लायक नहीं होती. पीने को पानी नहीं मिलता. बिजली की बात कौन करता है? मिट्टी के तेल, मध्यान भोजन, ग्रामीण योजना और विकास का कोई काम तुम्हारी कमीशन खोरी से बच पाया है ? तुम देश में कुछ भी सुधार नहीं सकते तो कम से कम एक बात तो कर ही दो की जब भी मुंबई जैसी स्थिति आए खुले में आकर जनता के साथ खड़े होना तो सीखो. जाकर देखो मुंबई में जो प्यार जनता ने आज सुरक्षा बालों को दिया शायद उससे भी ज़्यादा आपको दिया था पर तुम लोगों ने उस प्यार के सम्मान को भी नहीं बचाया. केवल बातें नहीं सुननी हैं हम लोगों को. कुछ सख्त कदम तो उठाये जायें और हमें भी लगे कि कोई सरकार जैसी चीज़ इस देश में भी है. कब तक आतंक पर भी राजनीति होती रहेगी ? जब तुम्हारे कुकर्मों से यह देश ही संकट में आ जाएगा तब किस पर राज करोगे? अपने बेटे/बेटियों को इस मार्ग पर चला रहे हो पर क्या उनके लिए ऐसा ही देश छोड़ जाने का प्रयास कर रहे हो ? देश में चाहे कितनी भी पार्टियाँ हों पर कुछ मामलों पर अगर एक आवाज़ नहीं सुनाई दे तो उन पार्टियों की मायता समाप्त कर दी जानी चाहिए. जब चाहो जो भी बकवास करते रहो क्योंकि यहाँ लोक-तंत्र है? लोक-तंत्र में उत्तरदायित्व बहुत अधिक हो जाता है पर यहाँ तो सभी एक दूसरे पर कीचड़ उछालने में लगे हुए हैं. आज दिल्ली में कुछ तो सख्त कदम उठा लो आख़िर कब तक तुम नेता लोग अपनी नपुंसकता दिखाते रहोगे और तुम्हारी नपुंसकता की कीमत हमारे बहादुर जवान अपनी जान देकर चुकाते रहेंगें?