मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 12 जून 2020

सोशल मीडिया के स्वदेशी संस्करण

                                 आज इंटरनेट के युग में जब पढाई से लेकर मंत्रिमंडल की बैठक तक की सारी बातें केवल इंटरनेट के माध्यम से करने की कोशिशें की जा रही हैं तो उस समय आम जनता से लेकर विभिन्न सरकारी कामों तक में विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और ऍप्लिकेशन्स का उपयोग किया जा रहा है. पिछले दिनों देश में बहुत लोकप्रिय हो रहे ज़ूम ऍप में निजता से जुड़े कुछ मामले सामने आने के बाद सरकार तक ने यह कह दिया कि इसके उपयोग से बचें। ऐसे में सवाल यह उठता है कि कोरोना जैसे संकट में आखिर आम भारतीय एक दूसरे से किस तरह से सुरक्षित संवाद करे जिससे सभी के लिए एक सुरक्षित मंच उपलब्ध हो सके ? दुनिया भर में भारतीय आईटी विशेषज्ञों का जो हल्ला मचा हुआ है उससे देश को क्या कोई लाभ मिल रहा है ? एक समय भारत के अपने लिनक्स आधारित ऑपरेटिंग सिस्टम बनाने की बातें खूब हुई थीं पर उसका क्या हुआ यह आज किसी को पता नहीं है ?
                                     क्या भारतीय मेधा सिर्फ विदेशी कंपनियों में काम करने के लिए ही उपयुक्त है ? क्या कुछ ऐसा नहीं किया जा सकता कि आने वाले समय में भारत के खुद के उपयोग के लिए कुछ मूलभूत प्लेटफॉर्म्स बनाये जाएँ जिससे गोपनीयता का मामला भी सामने न आये और विदेशी संस्करणों से होने वाली जो आय देश के बाहर चली जाती है उस पर भी विराम लगाया जा सके. इस बारे में सरकार कुछ सोचना ही नहीं चाहती उसके पास सिर्फ खोखले नारे ही हैं. आज जब अधिकांश कार्यालयों में सूचनाओं का आदान प्रदान ई-मेल के माध्यम से होने लगा है तब भी हर सरकारी कार्यालय या अधिकारियों के पास एनआईसी की मेल आईडी तक नहीं है और वे विभिन्न कंपनियों की मेल आईडी से काम चला रहे हैं. क्या देश को एक मज़बूत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की आवश्यकता नहीं है जिसके माध्यम से हम अपने कामों को चीन की तरह कर सकें।
                                      इस तरफ सोचने का सारा दारोमदार अब निजी क्षेत्र की कंपनियों पर ही जाता है क्योंकि मोदी सरकार हर क्षेत्र में विनिवेश की तरफ बढ़ रही है तो उस से ऐसे किसी प्रोजेक्ट पर काम करने की आशा नहीं की जा सकती है जहाँ बड़े निवेश की आवश्यकता है. आज विप्रो, टाटा, एचसीएल, टेक महिंद्रा और रिलायंस जैसी कंपनियां इस दिशा में ठोस कदम उठा सकती हैं क्योंकि इनके पास आईटी पेशेवरों की संख्या और अनुभव भी है. यहाँ एक बात और समझने की है कि जो कुछ भी बनाया जाये उसमें किसी प्रचलित प्लेटफॉर्म की नकल करने के स्थान पर उसे नए सिरे से शुरू करने के बारे में गंभीरता से सोचा जाए. देश की ज़रूरतों के अनुरूप बने इस मंच से जहाँ एक तरफ लोगों को सहायता मिलेगी वहीं देश से बाहर जाने वाले धन प्रवाह को भी रोका जा सकेगा। कम से कम इस दिशा में अब गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है क्योंकि आने वाले समय में कोई ऐसा संकट भी आ सकता है जिससे सीधे तौर पर सिर्फ इंटरनेट पर ही लड़ा जाये तो हमारे पास उपलब्ध सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स अनुपलब्ध भी हो सकते हैं.  
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शनिवार, 6 जून 2020

बढ़ता संक्रमण और नागरिकों के कर्तव्य

                                                       देश विश्व स्वाथ्य संगठन के निर्देशों के अनुरूप ७८ दिनों का लॉक डाउन ८ जून के बाद से चरणबद्ध तरीके से अनलॉक होना शुरू होने वाला है इसके पहले ही १ जून से बहुत सारे राज्यों ने आने यहाँ विभिन्न तरह की गतिविधियों को शुरू कर दिया है. यह सही है कि लॉक डाउन के साथ जीने की एक नई विधा आम नागरिकों के सामने आई है और आने वाले समय में जब तक देश को इस वायरस से निपटने का कारगर उपाय नहीं मिल जाता है हम सभी को कुछ प्रतिबंधों और अपने आचरण से इस बीमारी के संक्रमण को रोकने की दिशा में काम करना होगा. लॉक डाउन को लेकर राजनैतिक बहस चाहे जिस भी स्तर पर हो पर इससे होने वाले लाभ और हानियों के बारे में आम जनता को सोचना ही होगा क्योंकि अस्पतालों में बढ़ती भीड़ में राजनेताओं को कोई परेशानी नहीं होने वाली है सिर्फ आम जनता के लिए ही वहां पहुंचना और सुविधाएँ ले पाना हमेशा की तरह बड़ी चुनौती बनने वाला है.
                          सरकार ने लॉक डाउन के माध्यम से देश को एक हद तक कोरोना के संक्रमण के पीक पर पहुँचने पर उससे लड़ने के लिए तैयार करने का काम ही किया है. अब जब हम लोग इससे जुडी सावधानियों के साथ जीना सीख चुके हैं तो इस बात पर एक बार फिर से विचार करने की आवश्यकता है कि हमें अब यह अपने जीवन का हिस्सा बनाना होगा क्योंकि जब तक बीमारी है तब तक इससे बचने के लिए सभी को आवश्यक सावधानियों पर ध्यान देना ही होगा। अब अपने को इस बीमारी से बचाने की ज़िम्मेदारी एक तरह से हम नागरिकों की ही है. सरकार हर जगह ध्यान नहीं दे सकती है इसलिए खुद एवं अपने परिवार को सुरक्षित रखने के लिए अब समय समय पर जारी होने वाले निर्देशों को मानना हम लोगों पर ही है. इन उपायों पर ध्यान रखकर ही हम अपने को सुरक्षित रखते हुए पूरे समाज को बीमारी से मुक्त रख सकते हैं.
                         सबसे पहले तो यही ध्यान रखना होगा कि १० वर्ष से कम के बच्चे और ६५ से ऊपर के बुजुर्ग के साथ गर्भवती महिलाओं के बाहर निकलने पर हम लोग स्वतः ही प्रतिबन्ध लगाएं जिससे हमारे परिवार का यह हिस्सा सुरक्षित रह सके. जो लोग स्वस्थ हैं वे भी बहुत आवश्यक कार्यों से ही बाहर निकले और काम करने वाले महिला पुरुष अपने कार्यस्थल पर पूरी तरह से सरकार की सूची के अनुरूप ही अपने बचाव को सुनिश्चित करें। ऐसी किसी भी परिस्थिति में जब हमारा बाहर निकलना आवश्यक हो तो अपने काम को समाप्त कर जल्दी से वापस अपने घरों में आ जाना चाहिए क्योंकि अभी जिस तरह से समुदाय में संक्रमण फैलना शुरू हुआ है तो कोई भी संक्रमित व्यक्ति हमारे संपर्क में आ सकता है जिसमें बीमारी के कोई लक्षण तो न हों पर वह संक्रमण का कैरियर हो और इस संक्रमित व्यक्ति से यह बीमारी हमारे घर तक भी आ सकती है. ऐसी परिस्थिति में हम सभी को एक ज़िम्मेदार नागरिक होने का परिचय देना होगा और बीमारी से खुद को बचाते हुए इसके प्रसार को रोकने में अपना योगदान देना ही होगा।
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