कल अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश के सामने जो लक्ष्य रखा वह बहुत बड़ा तो अवश्य है पर उसे पूरा करने इतना कठिन भी नहीं है. देश में आज़ादी के समय केवल १८ % साक्षरता थी जो २००१ में ६५ % तक जा पहुंची है. अभी भी देश के कमज़ोर वर्गों में शिक्षा का प्रसार नहीं हो पाया है, जिसके पीछे सामाजिक और आर्थिक मान्यताएं और मजबूरियां ही अधिक रहीं हैं. देश में जब तक महिला साक्षर नहीं होगी तब तक देश को चलाने के लिए वह पुरुषों पर ही निर्भर रहेगी. एक महिला पूरे परिवार को पढ़ा सकती है जबकि एक पुरुष से केवल एक व्यक्ति तक ही साक्षरता पहुँच पाती है. देश में जिस ईमानदारी से मनमोहन सिंह काम कर रहे हैं वह बहुत ही अच्छा है. इनके कार्यकाल में कई योजनायें बिना किसी शोर शराबे के आसानी से लागू कर दी गयी हैं और उनका समाज पर व्यापक असर भी दिखाई देने लगा है.आज आवश्यकता है योजनाओं को सही ढंग से लागू करवाने की क्योंकि सरकारें सारी योजनायें कल्याण के लिए ही बनाती हैं पर उनका सही ढंग से पालन नहीं हो पाने से ये सारी योजनाएं बेकार साबित हो जाती हैं . मनमोहन सिंह के इस प्रयास में देश को जुटना ही होगा तभी देश में महिला साक्षरता की दर बढाने में सफलता मिल सकेगी.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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