पश्चिम बंगाल के बीरभूमि जिले के सेंथिया स्टेशन पर दो ट्रेनों की टक्कर के बाद एक बात तो सामने आ ही रही है कि कहीं न कहीं रेल परिचालन में सुरक्षा और संरक्षा मानकों की अनदेखी तो की ही जा रही है. जब भी इस तरह की कोई घटना होती है उसके तुरंत बाद बयानबाज़ी होने लगती है. यह सही है कि रेल मंत्री होने के कारण ममता की ज़िम्मेदारी इस मंत्रालय के लिए बनती है पर जिस तरह से किसी स्टशन के कर्मचारियों की लापरवाही के लिए मंत्री को ज़िम्मेदार ठहराना एक परंपरा बनती जा रही है उससे सुरक्षा के मुख्य मुद्दे से ध्यान बंट जाता है. मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने जिस तरह से ममता पर आरोपों की झड़ी लगायी उसका कोई औचित्य नहीं बनता है फिर भी विपक्ष है इस बात का एहसास कराने के लिए भाजपा हमेशा से ही ऐसे घटिया हथकंडों में विश्वास करती रही है. आज हम यह कहते हैं कि हमारा लोकतंत्र परिपक्व हो चुका है पर जो सरकार में होते हैं केवल वही परिपक्व क्यों होते हैं ? विपक्ष में बैठने के साथ ही वे कैसे इतने भोले हो सकते हैं कि इस तरह की बातें करने लगें ?
किसी भी दुर्घटना के बाद आवश्यकता होनी चाहिए कि घायलों को समय रहते मदद दी जाये पर यहाँ तो एक दूसरे पर कीचड़ उछलने से ही फुर्सत नहीं मिलती है जो साथ में मिलकर कुछ ठोस किया जा सके ? यह सही है कि कई स्तरों पर हुई ग़लती के कारण ही यह रेल दुर्घटना हुई है पर उस लापरवाही पर ध्यान देने के स्थान पर केवल दूसरे की निंदा करना कहाँ तक उचित कहा जा सकता है ? अच्छा हो कि रेल अपने सुरक्षा तंत्र को मज़बूत करे और कोई ऐसी व्यवस्था भी बनाये कि आखिर किस कारण से खड़ी गाड़ी में टक्कर हो जाती है ? इस मामले में पूरे स्टेशन स्टाफ की लापरवाही लगती है क्योंकि जिस तरह से खड़ी गाड़ी में दूसरी गाड़ी टकराई है उससे तो यही लगता है कि सिग्नल,स्टेशन, ड्राईवर सभी की गलती इस घटना में रही है ? किसी एक तरफ से भी यदि जिम्मेदारियों को निभाया जा रहा होता तो इस घटना की तीव्रता को तो कम किया ही जा सकता था ? इस तरह की घटनाओं के लिए मंडल स्तर के अधिकारियों को और अधिक सचेत होना पड़ेगा और केवल मंडल मुख्यालय में बैठने से अब काम चलने वाला नहीं है क्योंकि जिस तेज़ी से हर मार्ग पर गाड़ियों की संख्या बढ़ती जा रही है उसको देखते हुए अब इन आला अधिकारियों को औचक निरीक्षण करने की आदत तो बनानी ही होगी ? केवल रेल मंत्री को अक्षम ठहराने से तो काम नहीं चलने वाला है ? यह सही है कि ममता का ध्यान अभी भी बंगाल पर ही अधिक रहता है पर केवल इस कारण से उनकी संवेदन शीलता और ज़िम्मेदार होने पर संदेह नहीं किया जा सकता है ?
एक बात और जो ममता के लिए नुकसान कर सकती है कि जब वे रेल मंत्रालय नहीं संभाल सकती हैं तो बंगाल को कैसे संभालेंगी ? कहीं ऐसा तो नहीं कि केवल वोटों के चक्कर में ही कुछ घटिया तत्व रेल के परिचालन को खास तौर से बंगाल में कटघरे में खड़ा करना चाहते हैं ? ममता अपना अधिकतर काम पूर्व रेल के कोलकाता मुख्यालय से ही करती हैं कहीं उनको बदनाम करने के लिए ही कुछ इस तरह की ओछी हरकतें तो नहीं की जा रही हैं ? कुछ भी हो आम रेल यात्रियों को सुरक्षित यात्रा करवाने के लिए सभी कदम उठाये जाने चाहिए.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
ममता दी को अभी सिर्फ़ और सिर्फ़ बंगाल के CM की कुर्सी ही दिख रही है ! क्या करें बेचारी इतना सालो से इसी जुगाड़ में ही जो लगी थी !
जवाब देंहटाएंपन्द्रह महीने में यानी ममता बनर्जी के रेल मंत्री बनने के बाद दो पचास लोगों की मौत विभिन्न रेल हादसों में हो चुकी है..। ममता पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनने की चाहत में रेल मंत्रालय को गंभीरता से नहीं ले रही हैं...।
जवाब देंहटाएंखैर रेल मंत्रालय का अब भगवान ही मालिक है..।
वैसे भैय्या आज बड़ी जल्दी खबर को खेल गये.. जिसको हम न्यूज चैनल वाले देर रात तक खेल रहे हैं उसे आप
सुबह सुबह ही खेल गए..।
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं