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रविवार, 18 जुलाई 2010

खाद्यान्न की सरकारी बर्बादी

    लगता है कि अब देश में विभिन्न बातों के लिए ज़िम्मेदार लोगों ने झूठ का सहारा लेकर अपनी बात को सही साबित करने का मन बना लिया है. अभी हाल में कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा था कि देश में खाद्यान्न का भण्डारण ठीक ढंग से किया जा रहा है पर आर टी आई के तहत मांगी गयी जानकारी में देबाशीष भट्टाचार्य को पता चला है कि बढ़ती खाद्यान्न कीमतों के बावजूद अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही के कारण करोड़ों रूपये का खाद्यान्न भण्डारण के समय सड़ रहा है. इसके लिए ज़िम्मेदार लोगों से इसकी कीमत वसूलने की बात तो शरद पवार करते हैं पर जब कुछ कार्यवाही करने का समय आता है तो कुछ भी नहीं किया जाता है. इस सारी प्रक्रिया में एक तरफ जहाँ लोगों को ऊंची कीमत पर खाद्यान्न खरीदना पड़ता है वहीं दूसरी तरफ सरकार ने इसकी खरीद में जिस सार्वजानिक पैसे का उपयोग किया था उसकी बर्बादी हो जाती है.
       कहीं ऐसा तो नहीं कि पर्याप्त भण्डारण की क्षमता होने के बाद भी इस तरह से गेंहूँ, चावल और धन को सड़ाने के पीछे कोई सुनियोजित साजिश चल रही है ? हो सकता है कि जान बूझकर आंकड़ों से कम खरीद की जाती हो और इस अन्न के एक बड़े हिस्से को खरीदा ही न जाता हो और इसमें से काफी हिस्से को भण्डारण आदि की समस्या दिखाकर ख़राब दिखा दिया जाता हो और वो अनाज स्थानीय व्यापारियों या खुले बाज़ार में कुछ कम दर से बेच दिया जाता हो ? इस पूरे खेल में यह हो सकता है कि केवल आंकड़ेबाजी ही की जा रही हो और सरकार को करोड़ों रुपयों का चूना लगाया जा रहा हो ? बर्बादी के आंकड़ों में हमेशा की तरह देश को बर्बाद करने वाले आंकड़े देने वाले उत्तरी क्षेत्र ने पहला स्थान पाया है. दूसरे स्थान पर पवार का गृह क्षेत्र पश्चिमी है पूर्वी क्षेत्र ने तीसरा स्थान लिया है तो बर्बादी के मामले में दक्षिण ने कम बर्बादी लिखी है.
       जिस समय देश में खाद्यान्न की समस्या हो रही है उसी समय १८ हज़ार मीट्रिक टन अनाज केवल भण्डारण की लापरवाही से बर्बाद किया जाना कहाँ तक उचित है ? पवार के पास समय ही नहीं है फिर भी बर्बादी के नाम पर केवल उनकी तरफ से रटा रटाया उत्तर ही आता है कि दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की जाएगी. कोई यह बताने की स्थिति में नहीं है कि आख़िर कितने लोगों के खिलाफ़ इस लापरवाही के कारण कार्यवाही की गयी है ? आज भी समय है कि इस बर्बादी को रोकने की कोशिश की जाये और अगर सरकार को लगता है कि उसके पास भण्डारण की समस्या है  तो उसे निजी क्षेत्र के सहयोग से गोदाम बनवा कर भण्डारण में उनका भी सहयोग लेना चाहिए जिससे निश्चित तौर पर इस तरह की बर्बादी को बचाया जा सकेगा. 

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