मंगलवार, 25 नवंबर 2008
अंधेर नगरी चौपट रानी...
वाह रे उत्तर प्रदेश ..... अभी पिछले दिनों यहाँ पर सफाई कर्मियों की भर्ती की गई. बेरोजगार होने के कारण बहुत से लोगों ने इसके लिए आवेदन भी कर दिए. कुछ धन से कुछ अपने बल से नौकरी पा गए. आज के समाचार पत्र में एक ख़बर देख कर रुका नहीं गया तभी तो यह लिख मारा... एक गाँव में चमचमाती गाड़ी से दो लोग आए बेचारे प्रधान जी ने सोचा की कोई अधिकारी आ गए हैं वो अपने कागज़ लेकर भागे पर जब पता किया तो जानकर हैरान हो गए की वो तो गाँव में नव -नियुक्त सफाई कर्मी हैं. अब हमारी सरकार चाहे जिस तरह से सभी के कल्याण की बात करे पर इस तरह से किसका कल्याण किया जा रहा है. क्या कुछ ऐसा नहीं हो सकता था की इन लोगों की सामाजिक स्थिति का आंकलन करने के बाद ही इन्हें रखा जाता. क्या ये लोग वह काम कर सकेंगें जो इस पड़ पर इन्हें करना है. उस गाँव में तो वे एक सफाई कर्मी को भी अपने साथ ले गए थे. क्या अब यह इस सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं है कि उस पूरे जनपद के सभी अधिकारियों को निलंबित किया जाए ? जो सरकार की प्राथमिकता को भी कुछ नहीं समझते उनसे किस तरह से अच्छे व्यव्हार की आशा की जा सकती है... जो समाज में समता मूलक नारा लगा रहे हैं क्या उन लोगों को पता है कि किस तरह से गरीबों के पेट पर लात मारी जा रही है ?
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बहुत सटीक लिखा है।
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