बुधवार, 3 दिसंबर 2008
जागो भारत
देश को मुंबई की समस्या को देखे हुए एक हफ्ता होने को है, जैसा कि हम सभी जानते हैं कि केन्द्र सरकार द्वारा इस बीच में कुछ आवश्यक कदम उठाये गए हैं पर हम भारतीयों की याद इतनी कमज़ोर है कि हम बहुत जल्दी ही सब भूल जाते हैं. इस बार हम सभी का उत्तरदायित्व है कि इस बात के लिए बराबर मांग करते रहें कि सरकार ने दिल्ली में जो कुछ कहा उस पर कितना अमल भी किया? इस बार मुंबई का घाव हमें भरने नहीं देना है क्योंकि तभी हम निकम्मी सरकारों पर अंकुश लगा पाएंगे. मनमोहन सिंह बहुत सौम्य हैं तो हम क्या करें ? उनकी सौम्यता अगर मजबूरी बनती दिखे तो शर्म की बात है, दिल्ली की बैठक भाजपा के भावी प्रधान मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी के लिए चुनाव प्रचार के सामने बेकार है. राष्ट्रवादी पार्टी के लिए सर्वदलीय बैठक का कितना महत्त्व है ये सबने देख लिया. सोनिया गाँधी कि चाहे जो मजबूरी हो उन्होंने संसद पर हमले के समय हमारे देशी नेताओं से अधिक परिपक्वता दिखाई थी.. उन्हें विदेशी कहने वाले देशी नेता उतनी समझ नहीं दिखा पाए. ये घटिया विधायक/सांसद संविधान के अनुसार जन सेवक हैं पता नहीं कब ये जन -प्रतिनिधि बन गए? अब प्रतिनिधि अपने हित की बात भी सोचता है जबकि सेवक मालिक के बारे में ही सोचता है. जनता को एक बार फिर से इन सभी को सेवक बनाना होगा तभी ये सुधरेंगें वरना ये प्रतिनिधि वोटों के चक्कर में अपने बाप भी बदल लेंगें.