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शनिवार, 20 दिसंबर 2008

उफ ये नेता

आज कल राजनीति किस दिशा में जा रही है इसका उदाहरण ऐ आर अंतुले से अच्छा नहीं मिल सकता. जब सारा देश एक त्रासदी से निपटने में लगा हुआ है तो इन जैसे नेताओं को आतंकी घटनाओं में भी साम्प्रदायिकता की बू आती है. धिक्कार है ऐसी नेतागिरी और राजनेताओं पर जो किसी के मर जाने में भी अपने वोटों को खोजते फिरते हैं. क्या यह ऐसा विषय है की जिस पर इस तरह से बातें की जायें ? जब पाकिस्तान से ही इस तरह की बातें सामने आ रही हैं कि सारे आतंकवादियों को वहीं पर प्रशिक्षित किया गया तो ये नेता कौन सी भंग के नशे में डूबे हैं कि इनको यह सब भी नहीं दिखाई देता है ? भारत में रह कर इस तरह से कुछ भी कहना आसान है जबकि किसी भी दूसरे देश में इतनी आसानी से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. अब तो चुप हो जाओ जो कहना है वो कोई नहीं कहता पर जब चुप रहना चाहिए तो सबकी ज़बान गज भर की हो जाती है.

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