शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008
खादी वाले गुंडे....
दिबियापुर की घटना ने यह तो साफ़ कर ही दिया कि भारतीय राजनीति में शुचिता का कोई स्थान नहीं रह गया है. आज हर दल इससे भी घटिया तरीकों से नोट कमाने में लगा हुआ है. कहाँ गए वो लोग जो अपनी स्वेच्छा से यहाँ आते थे और समाज को एक दिशा देने का प्रयास किया करते थे ? क्या आज सारा कुछ पैसे के लिए ही किया जाएगा ? आज कल उत्तर प्रदेश का प्रशासन जिस तरह से सरकार के तलवे चाटने में लगा हुआ है वह आगे कि प्रशासनिक जटिलताओं की ओर हमारा ध्यान क्यों नहीं खींच पा रहा है ? क्यों हमारी नज़र में कोई दल इतना बड़ा हो जाता है कि हम देश को नहीं देख पाते हैं ? अगर देश ही सुरक्षित नहीं होगा तो ये नेता कौन सा तेल बेचेंगें ? हम जनता के लोग किस तरह से देश के बारे में सोचते हैं ? क्या मुंबई को भूला जा सकता है ? नहीं.... मंजूनाथ की याद आती है क्या ? सही के साथ रहने की जो कीमत देश के जुनूनी लोगों ने अपनी जान देकर चुकाई है और हम इस बात में ही खुश हैं कि यह सब हमारे साथ तो नहीं हो रहा है .... वो दिन दूर नहीं कि कोई सही कहने वाला व्यक्ति अपनी जान देने में संकोच करने लगेगा... किसे नहीं पता है नेताओं को खुश करने के लिए सरकारी तंत्र कितना निरंकुश हो चुका है ? बस शतुरमुर्ग की तरह हम आँखें बंद किए ही खुश हैं कि कुछ नहीं ही रहा है. गुंडे नेता तो जेल से निकल जायेंगें और पार्टिया फिर से उन्हें टिकट देती रहेंगी क्योंकि उनमें जीतने का बूता है और जीतना ही अन्तिम ध्येय है चाहे कितनो की लाशें बिछा दो पर जीत कर आ जाओ.... अब तो जागो वरना ये देशी नेता अंग्रेजों का बहुत बुरा संस्करण बनने की तरफ़ जा रहे हैं अब इनका यह संस्करण हमें ही बाज़ार में नहीं आने देना है जिससे इस घटिया राजनीति पर रोक लग सके.. अपने आस-पास देखना शुरू तो कीजिए कुछ भी दिखाई दे तो एक आवाज़ तो आनी ही चाहिए. आतंकवादियों से तो एन एस जी बचा लेगी पर इन नेताओं से तो शायद वो भी न बचा पाए.
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