मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 27 दिसंबर 2008

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते....

जीवन में क्या क्या देखना होता है. मैं एक चिकित्सक हूँ आज एक ऐसे सच से पला पड़ा की मन खिन्न हो गया. एक महिला अपने कान के दर्द की दवा लेने आयीं कुछ विशेष कारण न मिलने पर मैंने किसी चोट के बारे में पूछा तो उनका उत्तर था कि कल रात पति पी कर आए मेरे कुछ कहने पर उन्होंने हाथ छोड़ दिया जिससे यह चोट लग गई... एक धक्का सा लगा कि क्या यह वही भारत है जहाँ कभी नारी की पूजा की जाती थी. कुछ समझ नहीं आया तो बस अपने मन की बात यहाँ पर लिखने बैठ गया. आज भी हर भारतीय नारी अपने परिवार को छोड़कर एक नए परिवेश में चुप-चाप चली जाती है यह मान कर कि अब वही उसका घर है. पर क्या वो कभी उसका घर बन पाता है ? शायद कभी नहीं हर बात के लिए उसे अपने माँ-बाप के प्रति ताने सुनने पड़ते हैं. हर घर में लड़की होती है पर अगर उस पर बहू का नाम आ जाए तो वह अपने बहुत से अधिकारों से अपने आप ही वंचित हो जाती है. कितने भी कानून बन जाए पर क्या इस तरह की घरेलू हिंसा झेलने वाली नारी अपने पति के विरुद्ध कोई शिकायत कर पायेगी ? पति नाम का प्राणी पता नहीं किस हवा में रहता है कि अपनी त्रुटियों के लिए भी वो पत्नी को ही दोषी मानता है. एक लघु कथा है कि किसी विदेशी ने जगह जगह महिलाओं को पूजा करते देखा क्योंकि उस दिन वट सावित्री की पूजा हो रही थी तो उस ने पूछ लिया कि यह सब क्या हो रहा है ? उसे उत्तर मिला कि ये सभी अपने पति के लिए प्रार्थना कर रही है. इस पर विदेशी ने पूछा कि कोई आदमी यह पूजा नहीं करता दिखाई दे रहा तो पता चला कि ये व्रत केवल महिलाएं ही करती हैं. आज भी देश में सारे व्रत महिलाओं के जिम्मे हैं या यह कहा जाए कि धर्म को महिलाओं ने ही बचा रखा है तो कुछ भी ग़लत नहीं होगा. पहले सोमवार और भी न जाने कौन से व्रत करे अच्छा पति पाने के लिए. फिर पति के लिए करवा चौथ का व्रत रखें. बच्चे होने पर उनके लिए सकट का व्रत रखें, और आदमी केवल खाने वाले व्रत रखकर ही खुश होते रहें कि उनकी अर्धांगिनी तो सारे व्रत कर ही रही है. आख़िर कब तक महिलाओं को इस तरह से धर्म, परिवार के नाम पर कुछ करने को कहा जाता रहेगा ? नारी ही जननी है और वो ही इस सृष्टि की रचना में सबसे महत्वपूर्ण है तभी तो वो सारे कष्ट होते हुए भी केवल कुछ कर जन चाहती है. क्या पिटना ही उसकी नियति है या उसने स्वयं अपने परिवार की खातिर यह ज़ुल्म सहने की ताकत अपने में पैदा कर ली है और आज भी वह किसी की गलती के लिए अग्नि परीक्षा से रोज़ ही गुज़रती रहती है.. मैं क्षमा प्रार्थी हूँ उस महिला से जिसकी बात को मैंने सार्वजानिक कर दिया जो कि एक चिकित्सक के लिए उचित नहीं होता पर यह सारा सबके सामने लाना भी आवश्यक था तो मैंने यह भी किया...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें