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मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009

चाँद की फिजां ख़राब..

आख़िर वही हुआ जिसका डर था चाँद और फिजां की वासना से सनी प्रेम कहानी ने ठीक उसी तरह से घुमाव लिया है जैसे उसे लेना चाहिए था. मानव और पशु में मात्र एक ही अन्तर है कि पशु सही ग़लत सोच नहीं सकते और यह भी नहीं सोच सकते कि समाज में रहने वाले लोगों को किस तरह से अपने व्यवहार को संयमित रखना चाहिए ? पर एक व्यक्ति जो समाज में एक गरिमा मयी पद पर हो और एक महिला जो अच्छे पद पर हो.. उन लोगों ने जिस तरह से प्रेम का उपहास किया बस यही बातें तो मानव को सच्चे प्रेम से दूर कर देती हैं. क्यों प्रेम की नींव वासना एवं शारीरिक लगाव पर जाकर समाप्त हो जाती है ? प्रेम तो व्यापक होता है पर जब प्रेम और आकर्षण में कोई अन्तर नहीं रखा जाता है तो समाज में इस तरह की बातें दिखाई देने लगती हैं. चाँद जो प्रेमियों के लिए सदैव से ही एक कारण रहा है अपनी प्रेमिका की सुन्दरता को बताने का.. इस नाम का कितना दुरूपयोग किया चन्द्र मोहन ने कोई नहीं बता सकता है. प्रेम तो फिजाओं में हवा कि तरह फैल जाता है पर अनुराधा ने जिस तरह से फिजां को ख़राब किया वह कैसा प्रेम था ? दोनों ने जिस तरह से विवाह करने के लिए इस्लाम को स्वीकार किया वह तो और भी निंदनीय है . यदि इन दोनों का वास्तव में इस्लाम में ईमान था या है तो इन्हें आज भी इस्लाम में ही रहना चाहिए. पर ये तो स्वार्थी नेताओं की एक और घटिया हरकत है जिसमें ये धर्म जैसे संवेदन शील, नितान्त व्यक्तिगत विषय को भी उपहास तक पहुँचा देते हैं. यह अच्छा ही हुआ कि मुस्लिम धर्म गुरुओं ने इस बात को स्पष्ट कर दिया कि यदि इन दोनों ने केवल विवाह के लिए ही इस्लाम स्वीकार था तो ये दोनों स्वतः ही इस्लाम से खारिज हो गए हैं. क्या धर्म का ऐसा भी उपयोग करना चाहिए ? मेरे विचार से ऐसे लोगों को हतोत्साहित करना चाहिए जो किसी धर्म की मूल भावना को समझे बिना ही अपने स्वार्थ के लिए ऐसी घटिया हरकतें करते रहते हैं. इन चन्द्र मोहन-अनुराधा से तो हम सभी को बच के ही रहना चाहिए जिससे हम इनकी घटिया बातों से दूर ही रह सकें. प्रेम करना बुरा नहीं पर क्या यह वास्तव में प्रेम है भी ? बस एक निवेदन है कि इस तरह के लोगों से समाज का पीछा छुडाना चाहिए जिससे हमारी आने वाली पीढियों पर इसका बुरा असर न पड़े.

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