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मंगलवार, 24 फ़रवरी 2009

मत्स्य आयोग ......

अभी कुछ समय से नेताओं ने एक दूसरे की तुलना मछलियों से करनी शुरू कर दी है, बस इसी बात पर मेरे मन में आया कि अगर नेताओं के अधिकार पर कोई चोट करता है तो वे तुंरत ही उसे विशेषाधिकार का मामला बना देते हैं और विधान सभा या संसद से नोटिस जारी करा देते हैं. अब बेचारी मछलियाँ करें तो क्या करें की इन घटिया नेताओं ने उनकी तुलना अब अपने से करनी शुरू कर दी है. सोचिये अगर मछलीयों के वोट होते तो क्या किसी नेता की औकात थी की वो इस तरह की बात कर सके ? मेरे विचार से मछलियों के लिए अविलम्ब ही एक मछली आयोग का गठन करना चाहिए और उनकी तुलना किसी नेता से करने पर वे वहां पर शिकायत कर सकें. पर इस देश में जिसका वोट नहीं होता है उसकी कोई नहीं सुनता है. अब मछलियों के वोट कहाँ पर डाले जायेंगें ? किस तरह से पानी के अन्दर वोट डाले जायेंगे ? किस तरह से बूथ पर कब्ज़ा किया जाएगा ? किस तरह से कैसे परिणाम को प्रभावित किया जा सकेगा ? ये सारी बातें तो बहुत ही चिंताजनक हैं की अब मछलियाँ भी किसी नेता के खिलाफ शिकायत मत्स्य आयोग में शिकायत कर सकेंगीं. नेताओं बच के रहना कहीं पानी के अन्दर जा कर पेशी भुगतनी पड़े.

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