मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

मानवाधिकार या गुड वर्क

आगरा की एक घटना जिसमें फोटो में साफ़ तौर पर दिख रहा था कि एक बदमाश किस तरह से पुलिस के चंगुल में था और गुड वर्क के चक्कर में पुलिस ने उसे गोली मार दी। आख़िर कब तक इस तरह से इस देश में चलता रहेगा ? पुलिस अपनी जिम्मेदारियों को तो पूरा नहीं कर पा रही है और अपने गुड वर्क के चक्कर में किस तरह से ख़ुद ही फ़ैसला करने लगी है यह चिंतनीय है। आज के युग में जब कुछ भी छिपा नहीं है तो किस तरह से चंद लोग इस तरह से मनमानी कर सकते हैं ? क्या इन लोगों को किसी का डर नहीं है ? डर हो भी कैसे क्योंकि पहले जो प्रशासनिक कार्य क्षमता के आधार पर होते थे आज पैसे के आधार पर किए जाने लगे हैं, जब हर जगह पैसे का ही बोल बाला है तो गुणवत्ता की बात कौन करना चाहेगा ? आज एक थानेदार की पोस्टिंग के लिए कितना पैसा देना होगा इसका भी एक रेट है तो फिर वह थानेदार किस तरह से निष्पक्ष होकर अपने कार्य को कर पायेगा ? जब किसी नेता को पैसे देकर ही वह अपनी कुर्सी पाता है तो किस तरह से उस नेता के हुक्म को मानने से मन कर सकेगा यह भी विचारणीय है ? बात चाहे जो भी हो पर किसी अपराधी को क्या इस तरह से मारा जाना उचित है ? क्या यह भी तालिबानी मानसिकता की ओर बढ़ते हुए कदम नहीं हैं ? कुछ अच्छा करने की चाह जब मानवीय संवेदनाओं से परे हो जाती है तो पता नहीं कितने अपराधियों को मुकदमा सुनाये बिना ही जिंदगी का केस बंद कर दिया जाता है। देश में बढ़ रहे नक्सल प्रभाव एवं आतंक के पीछे भी कहीं मन की छिपी हुई वेदना को निकलने का एक मार्ग ही तो नहीं है ? फिर भी आशा है की संवेदनाएं बची रहेंगीं और अपराधियों को कड़ा दंड भी दिया जाएगा.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. सही लिखा है
    जब कसाब और अफज़ल को मेहमानी दी जारही है तो भारतीय अपराधियों को ही क्यों मारा जाये?

    हर अपराधी को आराम से एयरकंडीशंड जेल में रखकर अच्छी सुविधायें देनी चाहिये, कसाब और अफज़ल की तरह

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