उ० प्र० सरकार द्वारा जिस तरह से चुनाव के बाद ताबड़ तोड़ तबादले किए जा रहे हैं वो किस तरह के सुशासन की आहट देते हैं ? देश में आज निकम्मी सरकारों का यही चरित्र बन चुका है कि अपनी नाकामियों पर परदा डालने के लिए किसी बलि के बकरे को ढूंढ़ना ज़्यादा आसान है बजाय इसके के वास्तव में अपनी कमियों को देखा जाए।
पिछले दो सालों का आंकडा यदि उ० प्र० में देखा जाए तो बहुत ही निराशाजनक तस्वीर दिखाई देती है। जब सरकारें अपने हितों को साधने के लिए ही नौकरशाही का उपयोग करने लगेंगी तो किस तरह से सुशासन दिखाई देगा। आज भी देखा जाए तो कोई भी जिलाधिकारी या पुलिस अधीक्षक पूरे मन से काम नहीं कर पाता है क्योंकि उसको यह मालूम ही नहीं होता कि पता नहीं कब उसका तबादला हो जाए ? किसी भी परिस्थिति में निश्चित तौर पर संविधान ने यह अधिकार सरकार को दिया है कि वह अपनी मर्ज़ी से तबादले कर सके। पहले तबादलों का भी एक मौसम होता था, पूरे साल या कम से कम ३ साल रुकने की आशा भी होती थी तभी अधिकारी अपने परिवार को भी साथ ही रखते थे। आज यदि आंकडे जुटाए जायें तो शायद ही २५ % अधिकारी अपने परिवार के साथ रह पाते हैं जिसका असर उनके काम-काज पर भी पड़ता है। शनिवार तो क्या कहें शुक्रवार से ही ये लोग उन बड़े शहरों की ओर रुख कर लेते हैं जिनमें इनका परिवार रह रहा होता है। सोमवार सुबह जब बड़े साहब ही न हो तो मातहतों के बारे में कुछ भी कैसे कहा जा सकता है।
नेताओं ने देश में घुन की तरह प्रवेश कर लिया है मैंने सारा भारत तो नहीं देखा पर उसकी एक बानगी मुझे अपने आस-पास भी दिखाई देती है। रायबरेली..... इंदिरा जी का किसी ज़माने में निर्वाचन क्षेत्र होता था आज सोनिया वहां से सांसद हैं जिसको पानी की कमी से छुटकारा दिलाने के लिए शारदा सहायक नहर परियोजना का पूरा तंत्र है। सभी जानते हैं कि बालू का उत्खनन केवल ठेके ले कर ही किया जा सकता है पर लहरपुर,बिसवां, महमूदाबाद और अन्य जिन जगहों से यह नहर निकली है सारी जगहों पर अवैध उत्खनन किया जाता है। अब यह बात स्थानीय अधिकारियो और नेताओं के संज्ञान में भी होती है पर कभी पैसे और कभी रसूख से नियमों को कफ़न पहना दिया जाता है और बेईमानी का धंधा बहुत ही ईमानदारी से मिल बाँट कर चलाया जाता है। यह तो मात्र एक उदाहरण है क्या आप लोगों ने कभी किसी नदी के किनारे से धूल के गुबार उठाते ट्रक, ट्राली देखे हैं ? कभी सोचा कि यह भी अवैध उत्खनन हो सकता है ? नहीं न ! फिर कैसे हम किसी परिणाम की आशा लगा सकते है जब हम ही अपने आस-पास होने वाली घटनाओं से आँखें मूंदें रहते हैं ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
यह तो चूहे बिल्ली वाला खेल है. चलता ही रहेगा. घिस घिस कर ईमानदारी की सत्यनारायण कथा पढ़्ने के लिए लोग नौकरशाह नहीं होते. उन्हें तो लूट का हिस्सा चाहिए. थोड़ा बहुत कष्ट वगैरह तो job hazard है लगा रहेगा. लक्ष्मी आती रहनी चाहिए.
जवाब देंहटाएंबेईमानी की ईमानदारी मैंने खुद देखा है. बड़े अफसर ने घूस में 5550/- माँगे. क्यों? 5000 खुद के लिए, 500 क्लर्क के लिए और 50/- चपरासी के लिए. यह उस विभाग का अलिखित नियम है.
आप की संवेदनाएं जीवित रहें. यही प्रार्थना है.
word verification का झंझट हटा दें. इससे कुछ हासिल नहीं होता.मात्र एक निवेदन है बाकी आपकी इच्छा.
जवाब देंहटाएंवर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?> इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..
गिरिजेश जी धन्यवाद सुझाव के लिए. वर्ड वेरिफिकेशन हटा दिया है.
जवाब देंहटाएंsab ki har dhadkan me bharat sada jinda rahe tabhi kuchh sudhar ho sakta hai
जवाब देंहटाएंbhaiya ji bahut khoob.....
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