आस्ट्रिया से उठी चिंगारी ने पंजाब में जिस तरह से अराजकता का माहौल बना दिया वह चिंताजनक तो है ही साथ ही हमें यह भी सोचने को मजबूर करता है कि आख़िर हम कितने असहिष्णु होते जा रहे हैं। किसी की भी हत्या सदैव ही आक्रोश को जन्म देती है फिर एक संत की हत्या को किस तरह से साधारण रूप में लिया जा सकता है ? जो कुछ भी हुआ निश्चित ही बहुत ग़लत हुआ पर अब जो कुछ हम अपने ही देश में अपने देश वासियों के साथ करने में लगे हैं वह कहाँ तक उचित है ? आज के माहौल में जब किसी आक्रोश की बात होती है तो क्यों इस तरह के आन्दोलन अराजकता की भेंट चढ़ जाते हैं यह भी देखने का विषय हो सकता है। पिछले वर्ष गुर्जरों का आन्दोलन हो या फिर अमरनाथ यात्रा से जुडा आन्दोलन ... हमेशा ही एक अच्छा स्वर किसी ग़लत हाथों में चला जाता है॥ हम लोकतंत्र में रहते हैं और हमें अपनी बात को कहने का हक होना ही चाहिए पर इस तरह से कब तक अराजकता फैला कर हम दुनिया के सामने अपनी छवि पर दाग लगाते रहेंगें ?
क्या हमने कभी यह सोचा कि इस तरह की अराजकता कितनों पर भारी पड़ती है ? ज़रा जम्मू स्टेशन पर फंसे यात्रियों के बारे में सोचिये ? उनमें से पता नहीं कितनों को आज अपने घर पहुँच कर अपना काम करना था पर अभी भी वे जम्मू में ही फंसे हुए है । ट्रेन को आग के हवाले करने से क्या किसी को वापस लाया जा सकता है ? नहीं न फिर अपने देश की सार्वजनिक संपत्ति को इस तरह से नष्ट करना कहाँ तक उचित है ?
आज इस बात पर सरकारों को भी ध्यान देना होगा कि सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचने वालों से किस तरह से निपटा जाए ? अच्छा हो कि इस तरह से नष्ट होने वाली संपत्ति की भरपाई सम्बंधित राज्य को केन्द्र से मिलने वाली सहायता से पूरी कर लेनी चाहिए। जब तक कोई प्रक्रिया तय नहीं होगी कैसे हम अपनी ही संपत्ति को लुटने बचा पायेंगें ? एक बार एक तंत्र बन जाए तो सरकारें स्वयं ही पूरा ज़ोर लगा देंगीं और सार्वजनिक संपत्ति नष्ट नहीं होगी। किसी ट्रेन, बस या अन्य किसी को जलाकर अपना विरोध किस तरह से प्रकट करना कितना उचित है यह हमें सीखना ही होगा।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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