सपने टूटने में कितनी देर लगती है ? कुछ भी नहीं... देश के नेताओं से यह पूछा जाए तो शायद वे जवाब देने से पहले रोने ही लगें। जनता ने समस्याओं से ऊब कर जिस तरह से सिंह इस किंग की गर्जना की उससे उन लोगों को बहुत दुःख हुआ जो सौदे बाजी कर संसद को बंधक बनने का सपना देख रहे थे। आज की स्थिति में ऐसे हाल हो गए है की लोग बिना मांगे समर्थन देने की बात कर रहे हैं। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा उदाहरण हो जब मजबूर प्रचारित किए जाने वाले नेता ने इतनी मजबूती दिखाई हो कि सभी कुछ उसके पक्ष में होता चला गया। जनता जानती है कि मनमोहन कमजोर नहीं सौम्य हैं, वे कड़े निर्णय ले सकते हैं यह परमाणु मुद्दे और २६/११ पर जनता देख भी चुकी है। जिस दिन से सभी नेताओं ने मनमोहन को कमज़ोर बताना शुरू किया बस उसी दिन से मनमोहन मज़बूत होते चले गए।
अच्छा हुआ कि देश चलाने के लिए क्षुद्र राजनीति करने वालों से निजात मिल गई अब यह मनमोहन पर निर्भर है कि वे इस अवसर को किस तरह से देश के हित में उपयोग करते हैं और आगे आने वाले चुनावों में किस तरह से कांग्रेस को लाभ पहुँचा पाते हैं ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
बहुत भला हुआ..ईश्वर का लाख लाख शुक्र!!
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