महिला आरक्षण को लेकर जिस तरह से कल एक नेता जी का बयान आया वह निश्चित तौर पर बहुत दुर्भाग्य पूर्ण है। कभी तो ख़ुद ही ज़हर पीने के लिए तैयार दिखते हैं और कभी अपने को ख़ुद ही सुकरात बताने लगते हैं। ध्यान देने की बात यह है की यह सभी स्वनामधन्य नेता लोग जिस राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं आज तक वहां पर पुरुषों को ही सही हक नहीं मिल सका है फिर महिलाओं को कोई अधिकार क्यों देना चाहेगा। अब यह देखना है कि इन नेताओं को देश की जनता क्या सबक सिखाती है क्योंकि वोट देने वाली आधी आबादी तो महिलाओं की ही है। एक बार अगर ये महिलाऐं तय कर लें कि ऐसे महिला विरोधियों को वोट नहीं दिया जाएगा तो अगली बार ये सांसद नहीं बन पायेंगें। देश को महिलाओं को आगे लाने की आवश्यकता है पर जब भी कोई ठोस प्रयास किया जाता है कुछ लोगों के पेट में दर्द होने लगती है क्योंकि वे शायद महिलाओं को अपनी बराबरी करते नहीं देख सकते हैं। जब बात हक की हो तो जिसे नहीं मिला है पहले उसकी बात की जानी चाहिए।
सरकार को चाहिए कि इस बार यह विधेयक पारित हो जाए जिसको सुकरात या हिटलर बनना हो वह बनता रहे और कृपा करके देश की आधी आबादी को आगे आने वाले रास्ते को छोड़ दे कहीं ऐसा न हो कि वे स्वयं ही अपना हक मांगने आ जाए और तब नेताओं के पास कुचल जाने के आलावा कोई रास्ता ही न बचे.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
नमस्कार शुक्ल जी मैं आप की भावनायो की कद्र करता हूँ, आप जिन नेताओ की बात करते है उनका अपना कोई ईमान नहीं वे इस तरह की वेकार की बाते करके ही नेता गिरी करते है और जनता सोती है उन्हें नेता क्या कहते है इससे कोई सरोकार नहीं ये तो हम और आप जैसे कुछ निट्ठल्ले लोग है जो इन वेकार लोगो द्वारा कही गयी वेकार बातो पर बहस कर अपना टाइम ख़राब करते है ,अब मैं आता हूँ अरक्षन पर मैं तो अरक्षन के बिलुकुल खिलाफ हूँ अरक्षन से किसी का भला नहीं होने बाला अरक्षन तो फूट डालने का तरीका है, कभी धर्म के नाम पर अरक्षन कभी जाती के और कभी महिला और पुरुष के अरे बही इसे बंद करो और कुछ सकारात्मक सोचो कुछ देश का सोचो ,
जवाब देंहटाएंशुक्ल जी आप इसे अन्यथा नहीं लेगे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
www.praveenpathik.blogspot.com
atyant saarthak
जवाब देंहटाएंatyant saamyik
atyant rochak
______________atyant badhaiyan__________
सही सुझाव है ,इन लोंगो को चिल्लाने की आदत पड़ गयी है .
जवाब देंहटाएंशुक्ल जी
जवाब देंहटाएंइस समय देश की हालत के जिम्मेदार सिर्फ नेता और अधिकारी नहीं हैं | इस अवस्था के बराबर बल्कि कहीं ज्यादा भागीदार खुद जनता ही है | अधिकारिओं को और नेताओं को सर पे चढाने का काम जनता ने ही किया है , आज कितने लोग खुद राजनीती में कूदने की हिम्मत रखते हैं , अगर कोई इमानदार व्यक्ति चुनाव में खडा भी होता है तो कितने लोग उसे वोट देंगे , कोनसा चुनाव बिना शराबखोरी, जातीयवाद, धार्मिक उन्माद के लड़ा जाता है?
ये सब जात पात , धर्म इत्यादि जनता के द्वारा ही तो माने जाते हैं | और हमारी भारतीय जनता अपने दैनिक कार्यों
में कोनसा नैतिक व्यव्हार करती है? पाखंड के तौर पर तो दिन रात पूजा करेंगे, दूर देश मंदिरों में जायेंगे, श्राद
आदि करेंगे लेकिन दूध में अवश्य पानी मिलाकर बेचेंगे , किसी बाहर के यात्री से जान बूझकर अदिक पैसे लेंगे , गवाह तुंरत अपने पूर्व बयां से मुकर जाएँगे | हमारी राजनीति आरम्भ से ही ऐसी कदापि नहीं थी आज़ादी के तुंरत
बाद राजनेताओं की अच्छी जेनरेशन थी हमारे पास , लेकिन भारतीय जनता की इन्हेरेंट मक्कारी ने ही राजनीती को बिगाडा है |
सरकार ने फिर भी काफी कुछ किया है | सरकार के द्वारा आरक्षण लाया गया पिछडे वर्गों के उत्थान के लिए ?
लेकिन क्या उनका उत्थान हुआ? हाँ, लेकिन एक बार जो उठ चुके थे वो उठते ही गए और आरक्षण का फायदा नीचे तक नहीं पहुँच सका | क्या ये बात जनता जानती नहीं है ? सब जानते हैं लेकिन संकुचित निजी स्वार्थ और
मुर्खता के वश में आकर फिर भी जातीयवाद फैलाने वाले लोगों को ही मत देते हैं? रही भ्रष्टाचार की बात, शायद
आपको सुचना के अधिकार के बारे में जानकारी आक़र होगी ही ? सरकार ने ये अधिनियम भ्रष्टाचार मिटाने के लिए बनाया है | क्या अब अपने अधिकार का उपयोग भी सरकार ही इन्हें सिखाये?
नेताओं को लोग घर पे 'भोज' के लिए बुलाते हैं साथ में मोहल्ले वालों को न्योता भी ! इस भोज पर तो हजारों रुपये खर्च कर देंगे लेकिन बाहर सड़क पे बैठे भिखारी को एक रुपया देते हुए भी १०० बार सोचेंगे, रिक्शावाले से एक रुपये के लिए भी झगडा करेंगे | अगर ये व्यक्ति इतनी जहमत अपने अधिकारों का उपयोग करने में लगाये तो भ्रश्त्ताचार अपने देश में एक पल भी नहीं टिक सकता | आज सरकारी नौकरी में व्यक्ति जनता का दामाद बनने के लिए जाता है, कितने प्रतिशत लोग इस "आम जनता " में से समाज सेवा के लिए सरकारी नौकरी में आवेदन करते हैं? वैसे तो देश में बेरोजगारी है लेकिन सुना है की हमारी सशत्र सेनाओं में अधिकारिओं की कमी है? एक 'आम' मेधावी छात्र इसी सरकार द्वारा दिए हुई छात्रवृत्ति से अपनी इंजीनियरिंग , डाक्टरी या कोई अन्य पढाई पूरी करता है और झट से मौका मिलते ही विदेश के लिए रफूचक्कर हो जाता है |
अंत में मैं इतना ही कहना चाहूँगा की सरकार को गाली देदेकर हमने बहुत ही समय नष्ट कर दिया है | अब समय है कुछ अपनी जिम्मेदारिओं को समझने का और उनकी पलना करने का | प्रजातंत्र की एक खूबी है ' यथा प्रजा तथा राजा' |