सीतापुर का एक प्रकरण जो देश के किसी हिस्से में होने वाली घटनाओं जैसा ही है पर इसने निर्जीव पड़ी भाजपा को जनता से जुड़े मुद्दे से जोड़कर सीतापुर में मुख्य धारा में ला दिया है। इस घटना में भाजपा के नेता एक दलित महिला के साथ हुए दुराचार के आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए ५ दिनों से अम्बेडकर पार्क में धरना दे रहे थे। धरने का कोई असर होता न देख भाजपा के नेता नगर में बंद कराने के लिए जुलूस बनाकर निकले अचानक ही पथराव शुरू हुआ और बसों के शीशे तोड़े जाने लगे। आज भाजपा के कई नेता जेल में हैं।
घटना तो बहुत साधारण सी ही लगती है पर जब प्रदेश सरकार ही इतनी संवेदन हीन हो जाए कि महिलाओं से जुड़े मुद्दे भी पीछे ही रहने लगें तो बहुत दुःख होता है। मैं यहाँ पर दलित महिला का ज़िक्र नहीं करना चाहता क्योंकि महिला दलित हो या कोई और यह अपराध सबको ही एक जैसी वेदना देता है। वोटों के लालच में सरकार जिस तरह से पुलिस महानिदेशक को गाँव गाँव दौड़ा रही है वह समझ से परे है ? कहीं से भी दलित उत्पीडन की ख़बर आ जाए विक्रम सिंह उसी गाँव में अगले दिन हाज़िर हो जाते हैं। पता नहीं क्यों वे लखनऊ से ही इतना स्पष्ट संदेश क्यों नहीं दे सकते कि इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके और पुलिस का भय अपराधियों में दिखाई दे ? जिस प्रदेश में बहुत सारी समस्याएँ हो वहां पर आला अधिकारियों का इस तरह से विशेष तरह के मामलों में ही रूचि लेना कहाँ तक उचित है ? कहीं राहुल के दलितों में घुसपैठ करने से ही तो सरकार ऐसा नहीं कर रही है ?
आज तक सरकार ने पता नहीं किस दबाव में इस मामले में कोई ठोस कार्यवाई नहीं की पर जब प्रशासन की धमक सुनाई देनी चाहिए तो नहीं सुनाई देती और जब संवेदन शील होने की ज़रूरत होती है तो सख्ती की जाती है... आख़िर कब तक इस तरह से निकम्मे पन से काम चलाया जाता रहेगा ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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