अयोध्या विवाद की जांच से जुड़े लिब्रहान आयोग को अपनी रिपोर्ट सौंपने में १७ साल का समय लगा और इस समय जब देश में माहौल १९९१ के मुकाबले बहुत अच्छा है तो इस रिपोर्ट का देश की सेहत पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह नहीं कहा जा सकता। जिन परिस्थितयों में इस आयोग ने अपना काम किया है वह भी असाधारण ही थीं। आयोग के पास शक्तियां होने के बाद भी राज नेताओं ने जिस तरह से अपनी मनमानी की वह देश के लिए चिंता का विषय है। यदि आयोग बनाने वाले और आयोग बनाने की मांग करने वाले ही इस तरह से बर्ताव करेंगें तो देश में क्या संदेश जाएगा ? जब हम किसी न्यायमूर्ति की सलाह लेते हैं या उन्हें किसी आयोग का अध्यक्ष बनते हैं तो हमें उनकी गरिमा का भी ख्याल रखना चाहिए। पर आज के युग में जब हमारी अपनी ही कोई गरिमा नहीं बची है तो हम क्यों दूसरे की गरिमा का ध्यान रखना चाहेंगें ?
जहाँ पर बहुत से लोग होते हैं वहां पर बहुत सारे विवाद भी होते हैं सामान्य विवाद में कोई खास बात नहीं होती पर जब ये आम जन मानस की भावनाओं से जुड़े हुए होते हैं तो कुछ सतर्कता से इन्हें निपटाना चाहिए । दुर्भाग्य से देश ने एक ऐसा समय भी देखा जब कोई देश के बारे में न सोचकर केवल अपने लाभ के बारे में ही चिंतित था जिसने अपार जन धन हानि को बढ़ावा दिया। देश जब विकास के मार्ग पर आगे जा रहा है तो इस समय इस रिपोर्ट के साथ यह भी देखना होगा कि इसका इस्तेमाल कहीं फिर से धार्मिक भावनाओं को भड़काने में न किया जाने लगे। आज देश के नागरिक सुरक्षित है और जो विवाद हैं उन्हें अपने दम पर सुलझाने में सक्षम हैं तो फिर देश के राजनेताओं को भी यह सोचना होगा कि कोई नया बखेड़ा खड़ा करने से पहले विकास और प्रगति को भी ध्यान में रखें। सिर्फ़ हंगामा ही न हो कुछ ठोस प्रयास कर इस तरह के सभी विवादों के सम्मानजनक हल की तरफ़ भी कुछ सोचा जाए........
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
Bahut sahi kaha aapne.
जवाब देंहटाएंHamaare natayon ka inti jaldi sudharna to mushkil hai. magar, mere misaab se, neta isliye bhadkaate hain kyunki unhe pata ki log bhadkenge. Neta to wahi kahega to log sunna chahenge, shayad loging ke badalne se neta bhi badalne ko majboor ho jaayen.
जवाब देंहटाएंdesh ke stithi pe itni gahari chintan aur desh ke prati samman aur sneh dekh kar khushi hui .aap ek sachche bhartiye hai .badhai ho .mere blog pe aaye shukriya .
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