कल सर्वोच्च न्यायालय ने जिस तरह से उत्तर प्रदेश सरकार को कारण बताओ नोटिस जारी किया वह इस बात की तरफ़ इशारा करता है कि सत्ता मिल जाने पर कुछ राजनेता जनता की कमाई को अपनी संपत्ति समझने लगते हैं ? अच्छा ही हुआ कि इस तरह की बात की शुरुआत तो हो ही गई ... यह देश पहले से ही इतने झमेलों में फंसा हुआ है कि इस तरह के खर्चे बर्दाश्त नहीं कर सकता। हर व्यक्ति अपने मन की करने पर लगा है। महापुरुषों की मूर्तियाँ लगाने पर इस देश में किसी को भी आपत्ति नहीं है पर वर्तमान में सत्ता का सुख भोग रहे नेता यदि इस तरह से देश भर में मूर्तियाँ लगाते रहे तो एक दिन देश में इन नेताओं की मूर्तियाँ ही बचेंगी। देश ने अपनी धरोहर को सहेजना अच्छे से सीख रखा है जिस को सम्मान नहीं मिला है वह निस्संदेह सम्मान का हकदार है पर विवादों को बढाकर किए जाने वाले या किसी विशेष अभियान के तहत किए जाने वाले अच्छे कार्य भी संदेह के घेरे में आ जाते हैं। देश जिस तरह से सूर, कबीर, तुलसी, रसखान को याद करता है उतना ही सम्मान रविदास को भी देता है पर नेता की सोच पता नहीं कैसी होती है कि वह सर्वमान्य लोगों को भी इन टुच्चे विवादों में घसीट लेते हैं। संत महापुरुष समाज के होते हैं जातियों के नहीं ...... देश सब बर्दाश्त कर सकता है पर महापुरुषों का बंटवारा नहीं। हो सकता है कि मायावती को इस बात में कोई संदेह हो कि उनके बाद पता नहीं कोई उनकी मूर्तियाँ लगाएगा भी ? बस यही सोचकर उन्होंने अपनी मूर्तियाँ भी महापुरुषों के साथ लगवाने का प्रयास किया है।
प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से जिस तरह से प्रशासन की धमक अपराधियों के बीच ख़त्म हो रही है इसपर ध्यान दिया जाना चाहिए। सरकार के काम इतने अच्छे होने चाहिए कि वह लोगों के दिलों में बस जाए न कि लोग उसके खिलाफ हो जायें वर्तमान में दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित इस कसौटी पर खरी उतरती दिखाई देती हैं तो नवीन पटनायक, रमन सिंह, शिवराज सिंह चौहान, नरेन्द्र मोदी, पवन कुमार चामलिंग आदि की गिनती इसी में होती है कि वे जनता से जुड़ी बातों को समझते हैं और उसका कल्याण भी करना चाहते हैं।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
सब माया है
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