देश आज जिस तरह से बारिश का इंतज़ार कर रहा है वैसा तो शायद आज़ादी के लिए भी नहीं किया था। हम जिस समाज में रहते हैं उसमें हाथी के दांत वाला किस्सा ठीक बैठता है। किसी को सीख देनी हो तो हम सभी ज्ञानी बन जाते हैं पर जब ख़ुद अमल करना हो तो वही सीख हम बहुत आसानी से भूल जाते हैं। बहुत सारे कारण गिनाये जा रहे हैं इस बारिश के न होने में पर कोई यह क्यों नहीं सोचता की हम ही तो प्रकृति के साथ इतनी छेड़-छाड़ कर चुके हैं कि अब प्रकृति अपने हिसाब से चलने की आदी हो गई है। जब पानी नहीं बरसता तो हमें याद आते हैं पेड़ परन्तु प्रकृति पर विकास के नाम पर हम किस तरह से अँधा धुंध तरीके से वृक्षों को काट कर अत्याचार करते जाते हैं ॥
हम अगर अपने आस-पास ही नज़र डाल लें तो कहीं न कहीं हम प्रकृति के साथ बलात्कार करते हुए दिखाई दे जायेंगें। विकास के नाम पर एक छोटा सा उदाहरण यहाँ पर देना चाहता हूँ। सड़कों पर बढ़ते हुए दबाव के कारण आज देश के हर हिस्से में सड़कें चौडी की जा रही हैं पर कहीं पर भी सैकड़ों साल पुराने पेड़ों को काटने के बाद नए पौधे लगाये जा रहे हो कभी किसी ने देखा है ? सरकारें ठेकेदारों को सड़क चौडी करने का ठेका देती हैं और पता नहीं साथ में पेड़ लगाने की बात की भी जाती है या नहीं ? वन विभाग को पेड़ काटने में ही लाभ दीखता है पर कभी पेड़ लगाने का मामला हो तो बुंदेलखंड में पिछले वर्ष जिस तरह से पेड़ लगाये गए वह अपने आप में भ्रष्टाचार की मिसाल है।
हम नागरिक के तौर पर किस तरह से इन घटनाओं को लेते हैं यह भी देखने योग्य है क्योंकि सरकारें हम ही चुनते हैं और जब हम ही इन मुद्दों के लिए जागरूक नहीं हैं तो किसी भी सरकार के लिए यह मामला कितना अहम् हो सकता है ? पर्यावरण के लिए और समय से बारिश के लिए हमें अपने आस-पास पेड़ पौधों को लगाना ही होगा तभी हम किसी समय फिर से रिमझिम बारिश की आशा कर सकते हैं। हमारे बचपन में तो मानसून की बारिश हफ्तों तक चला करती थी पर बाढ़ नहीं आती थी और आजकल तो २ घंटे की बारिश ही अच्छे भले शहर की सूरत बिगाड़ कर रख देती है। फिर से वही यक्ष प्रश्न कि क्या हम तैयार हैं अपनी धरती को अपने लिए ही बचाने के लिए या फिर से हम सरकार की तरफ़ आशा की निगाहों से देखते रहेंगें ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
बहुत बढिया व प्रेरक आलेख लिखा है।।बधाई ।
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