उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के बाद से ही सरकार के दिल में जिस तरह से दलित प्रेम अचानक ही उमड़ रहा है वह संदेह पैदा करता है। यह तो बिल्कुल निश्चित ही है की जब कोई पार्टी बहुमत में आती है तो वही फ़ैसला करती है कि सरकार का मुखिया कौन होगा ? इस बात को बार बार कहने से कुछ भी नहीं होने वाला है। सब जानते हैं पर आज शायद दलितों का विश्वास जीतने के लिए माया का यहाँ यह कहना मजबूरी भी है क्योंकि जिस तरह से कांग्रेस ने उसके वोट बैंक में सेंध मारी की है वह चिंता का विषय तो है ही। किसी वर्ग विशेष की बात करने से उसका उत्थान नहीं होता है बल्कि सावधानी पूर्वक उनके लिए कुछ ठोस कदम उठाये जाने बहुत आवश्यक होते हैं। आज़ादी के बाद से क्या दलितों पर अत्याचार ही होते थे या अब दलित मुखिया की सरकार में यह बंद हो गए है ? यहाँ आज आवश्यकता है उस दलित विरोधी मानसिकता को बदलने की, जो सदियों से भारतीय समाज में जड़ें जमाये बैठी है। पर हम केवल समस्या की बात ही करते हैं समाधान के बारे में कुछ भी सोचना नहीं चाहते हैं। आज अगर कुछ भी करने की आवश्यकता है तो केवल दलितों या फिर इस तरह से कहें कि समाज के पिछड़े, वंचितों के लिए शिक्षा की व्यवस्था करने की । जब शिक्षा आती है तो बहुत सी बातों की समझ भी लाती है। छोटा सा उदाहरण है आप देश के किसी भी गाँव शहर के आर्थिक /शैक्षणिक रूप से पिछड़े क्षेत्र में जा कर देख लें यह मायने नहीं रखता कि कौन अगड़ा है या पिछड़ा, सभी के ५/६ बच्चे मिल जायेंगें। फिर किसी शहर के शिक्षित क्षेत्र में घूम कर देखें जहाँ दलितों की आबादी अधिक हो वहां पर आपको २/३ बच्चों का औसत ही मिलेगा। क्यों नही सरकारें अपने वोट पैदा होने से इनको रोकना नहीं चाहती हैं ? ज़ाहिर है कि जब सब पढ़े लिखे होंगें तो आँख बंद कर वोट कौन देगा ? बस इससे ही पता चल जाता है कि कौन किसका हितैषी है ?
शिक्षा को आवश्यक कर देना चाहिए समाज से बहुत सारी अवांक्षित बातें ख़ुद ही कहाँ गायब होंगी कि ढूँढने से भी नहीं दिखाई देंगीं.....
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
आपका कहना तो ठीक है की शिक्षा को आवश्यक कर देना चाहिए पर ऐसी विल्पोवेर लाएगा कौन...............
जवाब देंहटाएंनेता लोग ला सकेंगे............ इस में क्या विशवास........