कल प्रस्तुत रेल बजट में ममता बनर्जी ने जिस तरह से सारे देश को एक साथ रखने की कोशिश की है वह सराहनीय भी है और अनुकरणीय भी। भारत जैसे विशाल देश में जहाँ विभिन्न परिस्थितियां और मौसम हैं वहीं रेल का सञ्चालन अपने आप में एक चुनौती भरा काम भी है। किसी भी रेल बजट में पूरे देश को संतुष्ट नहीं किया जा सकता हाँ इतना तो ज़रूर ही किया जा सकता है कि देश भर की योजनायें किसी एक चश्मे से दिल्ली में बैठ कर ही न देखी जायें। इस काम में माननीय सांसद भी अच्छी भूमिका का निर्वाह कर सकते हैं। देश में जब चुनाव में ही इतनी दुश्मनी हो जाती है कि लोग एक दूसरे को देखना पसंद नहीं करते तो ऎसी स्थिति में सम्पूर्ण विकास समग्र दृष्टि की बात करना ही बेईमानी लगती है। जिस तरह से ममता दी ने हर सांसद से एक आरक्षण केन्द्र की संस्तुति करने की अपील की है वह सबको साथ में लेकर चलने की ही तो एक कोशिश है । अब यह हमारे माननीय सांसदों पर निर्भर है कि वे इस अपील का वास्तव में जनता को लाभ पहुंचाते हैं या फिर केवल अपने स्वार्थ एवं वोट के चश्में से ही इसको खुलवाते हैं ? देश में बहुत सारे काम जो कभी के हो जाने चाहिए थे आज तक नहीं हुए क्योंकि सही सोच का सदैव ही अभाव यहाँ पर रहता है। सांसद को पूरे देश का होना चाहिए पर वो चंद लोगों के ही होकर रह जाते है या फिर कुछ किसी क्षेत्र विशेष के । जब देश में व्यापक सोच का तरीका ही नहीं है तो किस तरह से किसी एक व्यक्ति या संस्था से पूरे देश के कल्याण की उम्मीद की जा सकती है ?
हम सभी को पूरी तरह से देश के बारे में सोचना चाहिए साथ ही यह भी देखना चाहिए कि किसी भी कदम से देश को काया नफा-नुकसान हो सकता है तभी सारे देश का सम्पूर्ण विकास हो सकेगा.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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