कल उत्तर प्रदेश में जिस तरह से राजनैतिक घटनाक्रम ने करवटें बदलीं वह भारतीय लोकतंत्र के लिए एक और शर्मनाक दिन ही है। पहले तो अति उत्साह में प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने जिस तरह से क्या और कितना अशोभनीय कह दिया यह तो निंदनीय है ही पर बाद में उनके माफ़ी मांगने पर भी राज्य सरकार ने जिस तरह से उन पर दलित उत्पीड़न की धाराएँ लगायी वह किस तरह की राजनीति की ओर इशारा करती हैं ? लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने का हक है पर किसी को भी कुछ भी तो नहीं कहा जा सकता है ? अब जब बात बिगड़ती दिख रही है तो सभी लोग लीपा पोती में जुटे हुए हैं। एक ओर जोशी के बयान से कोई भी व्यक्ति सहमत नहीं हो सकता वहीं दूसरी ओर राज्य द्वारा इतनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करना भी किसी की समझ से बाहर है । राजनैतिक मतभेद तो होते ही है और ये एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक भी है परन्तु जब इसमें व्यक्तिगत खुन्नस का समावेश हो जाता है तो वह गिजगिजी सी लगने लगती है। जिन लोगों को देश चलाने के लिए हम आदेश देते हैं वे इस तरह की ओछी बातों में समय नष्ट करने में ही लगे रहते हैं। बयान बाज़ी ने किस हद तक पलटा ले लिया है कि माया के खास सतीश मिश्रा ने केन्द्र सरकार से समर्थन वापसी की धमकी भी दी है वैसे क्या वास्तव में केन्द्र इनके सहारे है ? अब मायावती ने भी जोशी को छोड़कर अपनी बंदूकें सोनिया पर तान दी हैं कि यह सब सोनिया के इशारे पर हुआ है। कोई माने या न माने जब से सोनिया गाँधी ने कांग्रेस की बागडोर संभाली है तब से आज तक काफी हद तक कांग्रेस ने एक जिम्मेदार पार्टी की तरह ही बर्ताव किया है फिर उनसे इस तरह की राजनीति के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता है। सोनिया ने जोशी के बयान पर खेद जताकर मामले को एक तरह से शांत करने की कोशिश की है पर पता नहीं यह कोशिश माया के अहम् को कहाँ तक संतुष्ट कर पायेगी और किस हद तक मामला शांत हो पायेगा यह तो समय ही बताएगा, पर सोनिया ने एक तरह से पार्टी के नेताओं और अन्य लोगों को यह संदेश दे ही दिया है व्यक्तिगत टिप्पणियों से परहेज किया जाए और राजनैतिक झगड़ों को राजनीति तक ही सीमित किया जाए । आज अपने पर हुई टिप्पणी से माया को कितना बुरा लग रहा है पर उन्होंने कभी बापू कितनी आपत्तिजनक बातें कहीं हैं शायद वे भूल गई हैं ? उन पर कोई केस इसलिए नहीं बना क्योंकि इन बातों को कोई और उनकी तरह तूल नहीं देता है। प्रदेश सरकार ने जिस तरह से इस मामले में तत्परता दिखाई और गाजियाबाद /मेरठ प्रशासन ने जितनी जल्दी जोशी को गिरफ्तार किया उतनी जल्दी किसी अन्य मामले में तेज़ी नहीं आ पाती है ? सवाल पुलिस -प्रशासन की धमक का नहीं वरन नेता के रसूख का है। जोशी के घर को जब उपद्रवी आग लगा रहे थे तो पुलिस का मूक दर्शक बने रहना किस बात की ओर इशारा करता है ? यह भी नहीं कहा जा सकता कि जोशी का मकान कहीं दूर था और पुलिस जान नहीं पाई क्योंकि बसपा के दूसरे सबसे बड़े नेता सतीश मिश्रा का घर जोशी के घर के बहुत पास ही है......
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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