फिर से दिखा
क्या तुमने देखा ?
अब क्या करें
पहले तो बहुत आसानी
से ही दिख जाया
करता था.....
यह तो हम मनुष्य ही हैं
जिन्होंने लिया छीन
उसका प्राकृतिक आवरण
तभी तो आज वह
लुप्त हो गया पता नहीं कहाँ ?
काला-भूरा, श्याम श्वेत
और भी न जाने कितने
अवर्णित रंग लेकर
इन्द्रधनुष को फैलाये
अपने आँचल पर.....
आधुनिकता की दौड़ में
दिखावे की स्पर्धा में ..
कहीं हमने ही तो उसे
भगा नहीं दिया अपने से दूर......
फिर भी पता नहीं
कहाँ चला गया ?
वह हमारा प्यारा बादल.....
सचमुच इस साल तो बादल गायब ही हैं। समसामयिक और अच्छे भाव की रचना।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
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shyamalsuman@gmail.com
samasaamyik rachana .....dil ko chhoo gayi
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