आज आधिकारिक रूप से कारगिल युद्ध को समाप्त हुए १० वर्ष पूरे हो रहे हैं। किन कारणों से यह युद्ध हुआ या क्या होना चाहिए था इस बात पर अब भी बहस की बहुत सारी गुंजाइश आज भी बची हुई है। आज आवश्यकता है कि उन शहीदों की याद की जाए जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान कर दिया। भारतीय सेना ने जिस तरह से दुर्गम स्थानों पर विषम स्थितियों में यह युद्ध लड़ा और जीता भी वह भारतीय सेना की एक गौरव गाथा ही है। देश की सुरक्षा में हमारे जवानों ने जितनी दृढ़ता से दुश्मन को जवाब दिया वह उसके लिए अप्रत्याशित था। आज भी अख़बारों में रोज़ छपने वाली उस समय की गौरव गाथाओं को याद करके सिहरन सी होती है। बर्फीले रेगिस्तान में पहाड़ों के नीचे से ऊपर बैठे शत्रुओं को उनके स्थान से खदेड़ने का ऐसा कोई सैन्य अभियान अभी तक नहीं हुआ है। भारतीय सेना को कम तैय्यारियों के साथ अचानक ही युद्ध करना पड़ा। फिर भी शौय-पराक्रम की अद्भुत गाथा लिखने में सेना ने कोई कसर नहीं छोड़ी। आज हमें फिर से यह देखना होगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी सैनिक के परिजनों को अभी तक देश की ओर से सम्मान मिलने में कोई कसर तो नहीं रह गई ? कोई ऐसी बात जो होनी चाहिए थी और देश नहीं कर पाया हो आज याद करने की ज़रूरत है। एक निवेदन कि हम सभी सरकार की तरह न सोचें और आज के दिन को अपने स्तर से ही याद करने का प्रयास करें। पता नहीं कैसे सरकार के भारी भरकम मंत्रिमंडल से क्यों एक भी मंत्री सेना द्वारा आयोजित कार्यक्रम में क्यों नहीं पहुँचा ? फिर भी सेना देश की रक्षा के लिए अपनी परम्परा को निभाती है क्योंकि वहां पर गुण सर्वोपरि हैं और उनको वोट के लिए किसी की चिरौरी भी नहीं करनी होती है तभी वे निष्पक्ष होकर काम कर पाते हैं।
आज से १० वर्ष पूर्व कारगिल युद्ध पर यह कविता लिखी थी आज यहाँ पर फिर से प्रस्तुत है...
भारत माता मत कर चिंता शत्रु सदा से हैं पाखंडी,
तेरे लाल सदा तत्पर हैं हंस कर शीश चढाने को ।
बर्फीली चोटी पर उसने, छिप कर वार किया फिर से,
शांत चित्त मन को उसने किया सशंकित है फिर से।
श्वेत बर्फ को सिन्दूरी, चादर अब फिर से पहनाने को,
तेरे लाल.....
कायर बन कर आता है वो रिसता घाव छोड़ जाता ,
सुखी हो चुके जीवन को वो फिर से विष करता जाता.
ऊंचे पर्वत पर गौरव गाथा को फिर से अब लिख जाने को,
तेरे लाल....
तेरा है आशीष अभी माँ उसको मार भगाया है ,
बचे हुओं के जीवन पे अब निश्चित संकट आया है।
उसके घर में घुस कर फिर से ध्वंस आज कर जाने को,
तेरे लाल...
पहन के अब केसरिया बाना, निकली है अपनी टोली,
धूर्त शत्रु के रुधिर से होगी अब फिर से प्रचंड होली ।
कश्मीरी हर दिल पर अपने तीन रंग फहराने को,
तेरे लाल सदा तत्पर हैं हंस कर शीश चढाने को......
तेरे लाल सदा तत्पर हैं हंस कर शीश चढाने को ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना लिखी थी आपने !!
अमर शहीदों को नमन.
जवाब देंहटाएंभारत माता के शहीद सपूतों को नमन ..!!
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