कल भारत उन देशों के साथ खड़ा हो गया जिनके पास परमाणु पनडुब्बी बनाने की क्षमता है। ३० साल का परिश्रम और लगभग ३० हज़ार करोड़ रूपये खर्च करने के बाद यह उपलब्धि भारत ने हासिल कर ही ली। इस पूरे निर्माण में हमारे पुराने सामरिक सहयोगी रूस की भूमिका बहुत अच्छी रही। यह महज़ एक संयोग ही था कि कल ही रूसी नौसेना का स्थापना दिवस भी था। इस अवसर पर प्रधान मंत्री ने जो कुछ कहा वह भी भारत के उस दृष्टिकोण के अनुकूल ही है कि हम किसी को डराना नहीं चाहते पर कोई हमारी सहनशीलता को हमारी कमजोरी न समझे। इस पनडुब्बी पर सागरिका मिसाइल भी लगी होंगीं जो हमले के समय दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब देने में सक्षम हैं। सामरिक महत्त्व के इस तरह के बहुत सारे विकास किसी भी देश के लिए बहुत ही आवश्यक होते हैं। देश में ही बहुत सारे लोग इस तरह के खर्चों को फालतू का बताने में भी नहीं चूकेंगें पर क्या देश की सुरक्षा के साथ कोई समझौता किया जा सकता है ? देश की बहुत ही दूर दर्शी प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गाँधी ने इस पनडुब्बी की परिकल्पना की थी । यह उनकी सोच का ही नतीजा है कि आज जब विश्व बहुत से मोर्चों पर असुरक्षित समझा जाने लगा है तो इस तरह के प्रयास हमारी तैयारियों को बल ही प्रदान करते हैं। देश में बहुत अच्छा काम करने की क्षमता है पर क्या उन सारी क्षमताओं का सही तरह से नियोजन देश में हो पा रहा है ? आज हमें हर मोर्चे पर देश को आगे ले जाने की दिशा में सोचना है, तभी देश के नागरिकों का विश्वास बढेगा और दुश्मन हमला करने से पहले कई बार सोचेगा।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
हमारी सहनशीलता को हमारी कमजोरी न समझे।...अच्छा ..??
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