मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 5 अगस्त 2009

रक्षा बंधन

आज जब सारा देश रक्षा बंधन का पवित्र त्यौहार मनाने में तल्लीन है तो वहीं पर कुछ ऐसे भाई-बहन भी हैं जो चाहते हुए भी किसी मजबूरी के कारण एक दूसरे से नहीं मिल सकते हैं। कभी तो कुछ पारिवारिक तौर पर ऐसा हो जाता है कि उसके कारण इनका मिलना हो नहीं पाता। कभी किसी परिस्थिति ने इनको इतना दूर कर दिया होता है कि वे एक दूसरे की शक्ल भी नहीं देखना चाहते हैं । समाज में बहुत सारी बातें चलती रहती हैं पर जन्म से जुड़े रिश्तों को जब इतनी आसानी से भुला दिया जाता है तो सबसे ज़्यादा बुरा माँ को लगता है कि क्योंकि उसके लिए सारे बच्चे एक समान होते हैं। बाकी लोग तो अपने ग़म को भुलाने के लिए अन्य बहुत से कामों में लग जाते हैं पर माँ का मन किसी भी काम में नहीं लगता है उसके लिए तो यह क़लेजे के एक टुकड़े को दूर करने जैसा ही होता है।
समाज में बहुत सारी बुराइयाँ समय के साथ आती चली गई परन्तु इन सब बातों की जड़ में कुछ खामी हमारी तरफ़ से ही रह जाती है जिस पर हम ख़ुद ही ध्यान नहीं देना चाहते हैं ? कभी किसी लड़की को इस लिए ही भुला दिया जाता है कि उसने अपनी मर्ज़ी से शादी कर ली या भाई ने कुछ ऐसा कर दिया कि बहन ने उसे दिल से लगा लिया। अगर देखा जाए तो आजकल समाज में वैसे ही इतने झमेले बढ़ चुके हैं कि किसी और के लिए जगह ही नहीं बची है फिर भी इस छोटी सी ज़िन्दगी में हम लोग कितनी सारी अनावश्यक बेकार की बातों में ही उलझ कर जीते रहते हैं ? हमें जो कुछ मिला हटा है उसे पूरा करने के लिए तो वैसे ही एक ज़िन्दगी कम है और उसमें भी हम रूठ कर बैठ जाते हैं ? हमारी गर्दन अकड़ जाती है कि हम कैसे झुक जायें ? कुछ नहीं होता अपनों के सामने कोई छोटा नहीं होता एक बार उन बिछडे हुओं को पुकार कर तो देखो कितनी बेचैनी से वे दौड़े चले आते हैं सारे गिले शिकवे पता नहीं कहाँ खो जाते हैं बस यह अनुभव ही किया जा सकता है । है अगर कोई ऐसा पल जिसे हम वापस पुरानी तरह से कर देना चाहते हैं तो लौटा लेना चाहिए उसको भले ही वह किसी बहाने से ही क्यों न हो ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

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