आज लाल किले से अपने संबोधन में मनमोहन सिंह ने जिस तरह से नरेगा पर ज़ोर दिया उससे यह तो पता चलता ही है कि केन्द्र की मंशा वास्तव में गरीबों तक पहुँचने की है पर इसमें सबसे बड़ा पेंच जो हमेशा से ही फंसा है वह यह कि केन्द्र को इसके लिए आख़िर में राज्य सरकारों पर ही इसके लिए निर्भर होना है क्योंकि केन्द्र केवल पैसे का आवंटन ही कर सकता है और इसके उपयोग के बारे में राज्यों से कह सकता है । अब कुछ राज्यों ने इस योजना से अभूतपूर्व प्रगति की है वहीं कुछ राज्यों ने इसमें बहुत उदासीनता दिखाई है। इसके अंतर्गत किए जा सकने वाले कामों में अब बहुत से अन्य कार्यों को भी जोड़ा जा रहा है जिससे इस कार्य की स्वीकार्यता और भी हो जायेगी।
इस योजना ने जहाँ ज़रूरत मंदों को बहुत सहारा दिया वहीं इसमें से भ्रष्टाचार की भी ऐसी गंदगी निकली कि देखने वाले भी शर्मिंदा हो गए। सारे देश में क्या हो रहा है कहा नहीं जा सकता पर हमारे सीतापुर जनपद में जिला सहकारी बैंक के कुछ कर्मियों ने जिस तरह से बन्दर बाँट कर इस कार्यक्रम की धज्जियाँ उड़ा दीं वह सारी योजना पर ही पानी फेरने जैसा है। एक चपरासी के खाते में १४ लाख रूपये और कुल अनुमानित ७० लाख का घोटाला वह भी केवल एक ही शाखा में आँखें खोलने वाला है। बात बात पर सी बी आई जांच मांगने वाले किसी भी नेता को इसमें ऐसा कुछ भी नहीं लगा कि इसकी जांच भी सही तरह से की जाए जिससे आगे आने वाले समय में कोई ज़रूरतमंदों का पैसा इतनी आसानी से ना खा जाए ? पर कहीं न कहीं नेताओं के संरक्षण के कारण ही सरकारी कर्मचारी इतने निरंकुश होते जा रहे हैं कि वे कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। राज्य सरकार एक ओर केन्द्र से धन की मांग करती रहती है और दूसरी ओर पैसे के दुरूपयोग को रोकने में कोई इच्छा शक्ति का प्रदर्शन भी नहीं कर पाती है। आज समय की मांग है कि इन सभी मामलों पर गंभीरता से विचार किया जाए कहीं ऐसा न हो कि जनता ही सामने आ जाए और जैसा कि इस बार के चुनावों में अपराधियों को मुंह की खानी पड़ी है तो आगे चलकर नेताओं को भी मुंह की खानी पड़े।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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