प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जिस तरह से कहा है कि हिंसा बर्दाश्त नहीं की जायेगी वह वास्तव में सरकार के किसी भी तरह की हिंसा के विरुद्ध सख्त कदम उठाने की तरफ़ ही संकेत करता है। उन्होंने जिस तरह से यह भी स्वीकारा कि आदिवासियों के प्रति संवेदनों में कमी ने भी इस तरह के अलगाव वादियों को प्रोत्साहन देने का काम किया वह भी सच ही है। किसी भी इलाके में विकास की गति अवरुद्ध होने पर ही लोगों को भड़काने का मौका सामने आ जाता है और अलगाव वादी इस माहौल का फायदा उठाने लगते हैं। उन्होंने एक बात और कही कि हिंसा और विकास साथ में नहीं चल सकते हैं इसलिए हिंसा को समाप्त ही करना होगा क्योंकि यह विकास के पहिये को रोक देती है।उन्होंने राज्यों का आह्वाहन करते हुए कहा कि राज्यों को व्यवस्था के कारण परेशान हुए लोगों के घावों पर मरहम लगाने का काम करना चाहिए। किसी भी कानून का स्वरुप ऐसा नहीं होना चाहिए जो देश के नागरिकों को ही परेशान करने लगे। आवश्यकता पड़ने पर इन कानूनों में बदलाव का प्रयास होना चाहिए। कानून देश की व्यवस्था को चलाने के लिए होने चाहिए न कि कानून व्यवस्था बिगाड़ने के लिए। आज के समय में सीधे सादे आदिवासियों को जिस तरह से बरगला कर उनके व समाज के लिए समस्या को बढ़ाने का काम कुछ लोग करते हैं उससे पूरे समाज को नुकसान झेलना पड़ता है।
आज समय की मांग है कि आदिवासियों के हितों का ध्यान रखते हुए ही सारे कानून बनाये जायें केवल सम्मेलनों में कुछ भी कह देने से इस समस्या का कोई हल नहीं निकल सकता है। किसी भी नतीजे पर पहुँचने के लिए अब ठोस कार्य योजना बनानी होगी जिससे सारे देश में विकास का पहिया एक रफ्तार से घूम सके और कहीं किसी को यह न लगे कि कुछ कमी उनके इलाके में रही जा रही है जो दूसरी जगहों पर नहीं है। आशा है कि राज्य इस मामले में केन्द्र के साथ मिलकर कुछ सार्थक पहल करेंगें और हिंसा करने वालों से सख्ती से पेश आयेंगें।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
आशा है कि राज्य इस मामले में केन्द्र के साथ मिलकर कुछ सार्थक पहल करेंगें और हिंसा करने वालों से सख्ती से पेश आयेंगें।
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काबिल प्रधानमन्त्री जी को
धन्यवाद!