नई दिल्ली स्टेशन पर एक बार फिर से लोगों का भीड़ तंत्र और रेलवे की लापरवाही उजागर हो गयी. यह सही है कि देश में लोगों को सुरक्षित यात्रा करने का ज़िम्मा रेलवे के पास है पर क्या किसी भी स्थिति में हम ज़िम्मेदार नागरिकों की तरह व्यवहार करके व्यवस्था को बनाने में जुटते हैं ? इसका उत्तर अभी तक तो ना में ही है... हो सकता है कि आने वाले समय में हमें यह समझ आ जाये कि सार्वजानिक स्थानों पर जहाँ बहुत भीड़ होती है ज़रा सी लापरवाही भी बहुत बड़ी समस्या खड़ी कर सकती है. कभी किसी ज़िम्मेदार नागरिक को सार्वजानिक परिवहन का उपयोग करते हुए देखिये तो यह लगता ही नहीं है कि हम भी किसी सभ्य समाज से आते हैं. हमारे सारे संस्कार पलक झपकते ही नष्ट हो जाते हैं जब हम किसी भीड़ भरे माहौल में ट्रेन या बस में चढ़ने का प्रयास कर रहे होते हैं. हम उस समय कितने जंगली हो जाते हैं अगर इसकी कोई वीडियो बनायीं जाये तो देख कर हमें खुद ही विश्वास नहीं होगा कि यह हम ही हैं ?
कई बार किसी तकनीकी व्यवस्था या मजबूरी के चलते रेलवे को आखिरी समय पर ट्रेन का प्लेटफार्म बदलना भी पड़ जाता है अब इसका मतलब यह तो नहीं हो सकता कि हम अपनी गाड़ी पकड़ने के लिए स्टेशन पर लाशों के ढेर लगा दें ? नियमों में संशोधन कर दिया जाना चाहिए कि अगर ट्रेन जाने के समय से ३० मिनट पहले प्लेटफार्म में परिवर्तन किया जायेगा तो ट्रेन को प्लेटफार्म बदलने की सूचना उदघोषित होने के ३० मिनट बाद ही रवाना किया जायेगा. जब इस तरह का नियम बना दिया जायेगा तो लोगों के पास जल्दी करने का कोई कारण भी नहीं होगा. कोई अगर नियम की अनभिज्ञता के चलते जल्दी भी करता है तो जो नियम जानते हैं कम से कम वे तो आराम से अपनी ट्रेन पकड़ सकते हैं. इस बात की उदघोषणा भी प्लेटफार्म बदलने के साथ की जानी चाहिए तभी यात्रियों की सुरक्षा हो सकेगी. तकनीकी कारणों से बहुत बार रेलवे को इस तरह के परिवर्तन अंतिम समय में करने पड़ जाते हैं. समय अनुपालन का ध्यान रखा जाना भी आवश्यक है पर इस तरह के मामलों में समय अनुपालन में थोड़ी छूट देनी चाहिए जिससे रेलवे कर्मचारियों पर भी काम का अनावश्यक दबाव न पड़े.
आशा है कि जनता से जुड़ी हमारी रेल मंत्री ममता बनर्जी इस मामले में आवश्यक संशोधन करने का प्रयास करेंगीं. रेलवे को भी स्टेशन पर इस बात का ध्यान रखना होगा. भीड़ भरे स्टेशन पर अगर आखिरी समय किसी गाड़ी का प्लेटफार्म बदला जाये तो उसकी सूचना पहले से जी आर पी को दी जाये और लोगों के प्लेटफार्म बदलने तक स्टेशन मास्टर या सहायक स्टेशन मास्टर व्यवस्था का सञ्चालन खुद खड़े होकर कराएँ. इस तरह के कुछ प्रयासों से ही दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है और कुछ यात्रिओं की रेल यात्रा को उनकी अंतिम यात्रा बनने से रोका भी जा सकता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
बड़ा अफसोसजनक हादसा रहा.
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