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शनिवार, 11 सितंबर 2010

शिक्षा सुधार और सिब्बल...

जिस तरह से देश के शिक्षा तंत्र में बदलाव के लिए मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल पूरी तन्मयता के साथ लगे हुए हैं वह निश्चित तौर पर आने वाले समय में देश में बहुत बड़े बदलाव लेकर आने वाला है. जिस तरह से कोचिंग के धंधे पर रोक लगाने के लिए उन्होंने आईआईटी प्रवेश परीक्षा में १२ वीं के नंबरों को भी महत्त्व देने की बात की है वह निश्चित तौर पर सराहनीय है. अभी तक कुछ राज्य विशेष के बच्चे इन प्रतिष्ठित परीक्षाओं में सफल नहीं हो पाते हैं क्योंकि उनके यहाँ के तरीके वर्तमान में आईआईटी प्रवेश परीक्षा के अनुसार तैयार ही नहीं है. सिब्बल जिस तरह से पूरी शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन करने में लगे हुए हैं वह शायद मैकाले के बाद भारत में सबसे बड़ा शैक्षिण परिवर्तन होगा क्योंकि अभी तक किसी ने भी इस संवेदनशील मामले में किसी भी तरह से कुछ भी नहीं करना चाहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि अभी तक इस कमी की तरफ किसी का भी ध्यान नहीं गया था और अगर किसी ने कोशिश भी की तो वह केवल व्यवस्था की आलोचना भर थी.
        मानव संसाधन विकास मंत्रालय इस तरह की प्रतिष्ठापूर्ण परीक्षाओं में परिवर्तन के बारे में पहले ही कह चुका है और अब इसकी नियंत्रण समिति द्वारा भी इस परिवर्तन की आवश्यकता का अनुमोदन कर दिए जाने से कई बड़े बदलाव अब आसानी से किये जा सकेंगें. अब मंत्रालय के स्तर पर इस बात पर विचार किया जायेगा और विशेषज्ञों की एक समिति बनाने के बारे में विचार भी किया जायेगा. जिस तरह से भारत के भविष्य से जुड़े इस महत्वपूर्ण मसले पर अब विचार किया जा रहा है वह निश्चित तौर पर भारत की युवा शक्ति को सही ढंग से अपनी प्रतिभा को निखारने का अवसर प्रदान करेगा. १२ वीं के नंबरों को महत्व मिलने से कोचिंग प्रथा में अपने आप ही कमी आ जाएगी क्योंकि तब बच्चे अपनी १२ वीं की परीक्षा को भी पूरी तन्मयता के साथ देंगें. अच्छे संस्थानों में पढने वाले बच्चों के लिए अब प्रतियोगात्मक परीक्षा के लिए किसी विशेष कोचिंग की आवश्यकता भी उतनी नहीं रह जाएगी.
       एक और अच्छा विचार जो इस बार सामने आया है कि भविष्य में चिकित्सा की पढ़ाई भी आईआईटी में ही करवाने का प्रयास किया जा रहा है क्योंकि जब तक चिकित्सा शिक्षा को आधुनिक विज्ञान का साथ नहीं मिलेगा भारतीय मेधा अच्छा तो करती रहेगी पर उसे कभी भी विश्व स्तरीय सम्मान नहीं मिल पायेगा. आज आवश्यकता है कि हमारे पास अंतर्राष्ट्रीय स्तर के बहुत अच्छे शिक्षा केंद्र होने चाहिए क्योंकि हमारी जो मेधा शक्ति दूसरे देशों में जाकर काम करती है वह तब अपने देश में ही सब कुछ कर सकेगी. आज के युग में चिकित्सा और आधुनिक विज्ञान में बहुत बड़ा सामंजस्य हो चुका है और अभी तक इस बारे में हमारे देश ने सोचना भी नहीं शुरू किया है जबकि दूसरे देशों में यह सब बहुत आगे तक जा चुका है. जब विभिन्न तरह के प्रयोग करने के लिए और उन पर विचार करने के लिए हमारे पास विशेषज्ञ हैं तो फिर उनका इसी परिसर में सही उपयोग करने में क्या बुराई है ? आज देश में चिकित्सा व्यवस्था में जिस तरह से राजनीति हावी हो गयी है उससे छुटकारा दिलाने के लिए इनको और स्वायत्त करने की आवश्यकता है. फिलहाल सिब्बल बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने सोये हुए शिक्षा तंत्र को झकझोरना तो शुरू कर ही दिया है.   
              
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