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गुरुवार, 4 नवंबर 2010

आज़म फिर सपा में वापस

चुनावों में लगातार हार के बाद और हाल में विवादित लोगों को सपा से बाहर का रास्ता दिखने के बाद से ही ये कयास लगाये जाने लगे थे कि जल्दी ही मो० आज़म खां सपा में वापस ले लिए जायेंगें. इस कड़ी में पिछले कुछ दिनों से सपा की तरफ से दिए जा रहे बयान भी इसी तरफ संकेत कर रहे थे. अब जब इस बात की विधिवत घोषणा कर दी गयी है कि सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने आज़म का निलंबन वापस कर लिया है और इस बारे में उन्हें सूचित भी कर दिया गया है तो लगता है कि जल्दी ही आज़म भी पुरानी कटुता को भूलकर सपा में फिर से सक्रिय भूमिका निभाने के लिए मैदान में आ जायेंगें.
      यह सही है कि आज़म खां सपा के संस्थापक सदस्यों में से एक है पर जब राजनैतिक मजबूरियां सामने आती हैं तो मुलायम सिंह जैसा कद्दावर नेता भी झुक जाता है और ऐसा दूसरी बार हो रहा है पहले जब कल्याण को सपा ने साथ में लिया था तो सभी ने यह सोचा था कि अब सपा के पुराने दिन लौट कर नहीं आयेंगें और लोकसभा चुनावों में सपा के प्रदर्शन के बाद लोगों की इस बात को मान भी लिया था. यह सही है कि आज़म के सपा में लौटने से कुछ हद तक मुस्लिम वोटों का जुड़ाव फिर से सपा से होने वाला है पर साथ ही इस बात पर अधिक ध्यान रखा जाना चाहिए कि माया विरोधी वोटों के बाँटने से बसपा एक बार फिर से लाभ ले सकती है. फिलहाल जिस तरह से बसपा सरकार हर मोर्चे पर औसत से कम साबित हो रही है तो वोटर भी किसी अन्य दल की तरफ देखना चाहता है और इस समय उत्तर प्रदेश में भाजपा कहीं भी टिक नहीं रही है और कांग्रेस अभी भी पूरी तरह से पैर ज़माने के प्रयास में है.
      फिल हाल सपा में पुराने लोगों की वापसे के बाद हो सकता है कि कुछ जुझारूपन बढ़ जाये पर जब तक ज़मीन से जुड़े नेता पार्टी में निर्णय लेते हैं तब तक पार्टी सही स्तर पर काम कर पाती है और जब ऊपर से थोपे गए नेता लोग आगे आ जाते हैं तो किसी भी पार्टी का बंटाधार हो सकता है. इस मामले में पिछले १२ वर्षों में कांग्रेस ही अपवाद रही है जिसमें ऊपर से आये नेताओं ने ज़मीन से जुड़े नेताओं से ज्यादा वास्तविकता को समझा है और सही अर्थों में जनता कि नब्ज़ टटोली है. आगे चुनावों में तो अभी देर है पर सपा ने अभी से अपना घर ठीक करने की जो कवायद शुरू की है निश्चित तौर पर उसे इसका लाभ भी मिलने वाला है  

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