देश में भ्रष्टाचार ने जिस तरह से अपनी जड़ें जमा ली हैं उनसे निपटने के लिए अभी तक कुछ ख़ास नहीं किया जा सका है. महाराष्ट्र में जिस तरह से तेल के माफियाओं ने जिले के उच्च अधिकारी को जिंदा जलाकर मार दिया उससे तो यही लगता है कि कहीं न कहीं से देश के वरिष्ठ नेताओं का हाथ इन देश द्रोहियों पर रहता है ? किसी भी सामान्य व्यक्ति की इतनी हिम्मत नहीं हो सकती है कि वह किसी भी सरकारी अधिकारी के खिलाफ़ इस तरह से हरकत कर सके ? कहीं न कहीं से स्थानीय नेता पुलिस या कहीं अन्य से समर्थन के बिना कोई भी इतना बड़ा कदम नहीं उठा सकता है ? आख़िर क्या कारण है कि कोई भी इस तरह का दुस्साहस करने की हिम्मत कैसे जुटा लेता है ? अधिकतर स्थानों पर जहाँ पर भी किसी अधिकारी के खिलाफ़ इस तरह की हरकत की जाती है वहां पर कहीं न कहीं से इन लोगों को किसी बड़े का वरद हस्त होता है.
आज भ्रष्टाचार देश के पूरे तंत्र को खोखला करने पर लगा हुआ है और अभी भी पूरे देश के किसी भी राजनैतिक दल ने केवल बातें करने के स्थान पर कोई ठोस कार्य योजना बनाने की तरफ़ सोचना भी नहीं शुरू नहीं किया है और बिना सार्थक विचार विमर्श किये आख़िर कैसे इतने बड़े मुद्दे पर सख्त कानून बनाये जा सकते हैं ? आज अगर देश में कुछ गड़बड़ है तो वह हमारा तंत्र ? क्योंकि जब इस तंत्र की परिकल्पना की गयी थी तब यह सोचा भी नहीं गया था कि इस हद तक देश के नेताओं और अधिकारियों का नैतिक पतन हो जायेगा ? उस समय जैसे लोग बहुमत से सत्ता में थे उनको यह पता ही था कि कैसे क्या किया जाना है ? पर उन्होंने यह सोचा कि राजनीति में आने वाले सभी लोग शुचिता को बनाये रखेंगें ? यह एक आकांक्षा की गयी थी और अफ़सोस की बात है कि यह सब कुछ आज पलट चुका है ?
आज तो देश के बड़े उद्योगपति और अन्य सामाजिक लोग भी भ्रष्टाचार के खिलाफ़ बोलने लगे हैं क्योंकि उनका सरकारी काम काज से रोज ही पाला पड़ता रहता है और वे जानते हैं कि यह भ्रष्टाचार कहाँ तक फैला हुआ है ? सबसे दुर्भाग्य की बात यह है कि अगर कोई सांकेतिक तौर पर इसकी बात भी करता है तो उससे भ्रष्ट लोगों के नाम सार्वजनिक करने को कहा जाता है ? आख़िर जो किसी भी तरह के व्यापार में लगा हुआ है वह किसी भी सत्ता प्रतिष्ठान से कैसे लड़ सकता है ? देश में जब तक भ्रष्टाचार के खिलाफ़ एक पूरा आन्दोलन नहीं छेड़ा जायेगा तब तक कुछ भी नहीं हो सकता है ? सबसे बड़ी समस्या यह है कि आख़िर कहाँ से वे लोग लाये जाएँ जो भ्रष्टाचारियों के खिलाफ़ कुछ कर सकें ? वे भी तो हमारे आप में से ही कुछ लोग होते हिं और पैसा किसी का भी ईमान डिगा सकता है ? एक बात जो हम नागरिक कर सकते हैं कि यह निश्चय कर लें कि अब हम किसी भी स्तर पर कोई भी भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं करेंगें तो कम से कम कहीं से एक छोटी सी शुरूवात तो हो ही जाएगी.......
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
आज भ्रष्टाचार देश के पूरे तंत्र को खोखला करने पर लगा हुआ है और अभी भी पूरे देश के किसी भी राजनैतिक दल ने केवल बातें करने के स्थान पर कोई ठोस कार्य योजना बनाने की तरफ़ सोचना भी नहीं शुरू नहीं किया है और बिना सार्थक विचार विमर्श किये आख़िर कैसे इतने बड़े मुद्दे पर सख्त कानून बनाये जा सकते हैं ? आज अगर देश में कुछ गड़बड़ है तो वह हमारा तंत्र ? क्योंकि जब इस तंत्र की परिकल्पना की गयी थी तब यह सोचा भी नहीं गया था कि इस हद तक देश के नेताओं और अधिकारियों का नैतिक पतन हो जायेगा ? उस समय जैसे लोग बहुमत से सत्ता में थे उनको यह पता ही था कि कैसे क्या किया जाना है ? पर उन्होंने यह सोचा कि राजनीति में आने वाले सभी लोग शुचिता को बनाये रखेंगें ? यह एक आकांक्षा की गयी थी और अफ़सोस की बात है कि यह सब कुछ आज पलट चुका है ?
आज तो देश के बड़े उद्योगपति और अन्य सामाजिक लोग भी भ्रष्टाचार के खिलाफ़ बोलने लगे हैं क्योंकि उनका सरकारी काम काज से रोज ही पाला पड़ता रहता है और वे जानते हैं कि यह भ्रष्टाचार कहाँ तक फैला हुआ है ? सबसे दुर्भाग्य की बात यह है कि अगर कोई सांकेतिक तौर पर इसकी बात भी करता है तो उससे भ्रष्ट लोगों के नाम सार्वजनिक करने को कहा जाता है ? आख़िर जो किसी भी तरह के व्यापार में लगा हुआ है वह किसी भी सत्ता प्रतिष्ठान से कैसे लड़ सकता है ? देश में जब तक भ्रष्टाचार के खिलाफ़ एक पूरा आन्दोलन नहीं छेड़ा जायेगा तब तक कुछ भी नहीं हो सकता है ? सबसे बड़ी समस्या यह है कि आख़िर कहाँ से वे लोग लाये जाएँ जो भ्रष्टाचारियों के खिलाफ़ कुछ कर सकें ? वे भी तो हमारे आप में से ही कुछ लोग होते हिं और पैसा किसी का भी ईमान डिगा सकता है ? एक बात जो हम नागरिक कर सकते हैं कि यह निश्चय कर लें कि अब हम किसी भी स्तर पर कोई भी भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं करेंगें तो कम से कम कहीं से एक छोटी सी शुरूवात तो हो ही जाएगी.......
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
आज भ्रष्टाचार देश के पूरे तंत्र को खोखला करने पर लगा हुआ है और अभी भी पूरे देश के किसी भी राजनैतिक दल ने केवल बातें करने के स्थान पर कोई ठोस कार्य योजना बनाने की तरफ़ सोचना भी नहीं शुरू नहीं किया है और बिना सार्थक विचार विमर्श किये आख़िर कैसे इतने बड़े मुद्दे पर सख्त कानून बनाये जा सकते हैं
जवाब देंहटाएंएकदम सही बात कही है.
इस भ्रष्टाचार को क्या कहें ....आज हर कोई अपनी डफली से अपना राग अलाप रहा है ..किसी को देश की चिंता नहीं ..शुक्रिया आपका
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