मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 4 मार्च 2011

रपट पड़े तो हर गंगा...

                                  उत्तर प्रदेश में सरकार किस तरह से हर न्यायोचित कदम कितनी मजबूरी में उठाती है इसका ताज़ा उदाहरण इससे मिलता है जिसमें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी के घर को फूंके जाने की घटना के आरोपी दो लोगों बसपा विधायक जीतेन्द्र सिंह और राज्य मंत्री का दर्ज़ा प्राप्त इंतज़ार आब्दी को सीआईडी ने मजबूरी में गिरफ्तार कर ही लिया. यह मामला दो वर्ष पहले का है जब रीता बहुगुणा ने मायावती पर कुछ व्यक्तिगत टिपण्णी कर दी थी और उस आरोप में उन्हें जेल भी हो गयी थी. रीता के लखनऊ स्थिति आवास को बसपा के कार्यकर्ताओं और पुलिस अधिकारियों की मौज़ूदगी में जला दिया गया था और मामला माया के सामने अपने को साबित करने का था इसलिए प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण इलाके में अग्निशमन दल भी नहीं पहुँचने दिया गया था ? यह सारा प्रकरण उच्च न्यायालय में चल रहा है उस समय कुछ दबाव में आई सरकार ने आनन फानन में कुछ फ़र्ज़ी लोगों को पकड़वा लिया था जो साक्ष्यों के अभाव में कोर्ट द्वारा छोड़ दिए गए थे और बाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद इस मामले की जांच शुरू की गयी थी. रीता बहुगुणा का आज भी यही मानना है कि इस सरकार में कोई भी जांच निष्पक्ष नहीं हो सकती है अतः इसकी जांच सीबीआई से करायी जाए.
                             प्रदेश सरकार जिस तरह से सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय का नारा लगाने से नहीं चूकती है उसकी सच्चाई तो इस बात से ही पता चल जाती है कि रीता बहुगुणा जोशी जो कि ब्रह्माण हैं उनके ख़िलाफ़ हुई आगज़नी की कोई सुनवाई नहीं होती पर माया जो कि दलित हैं उनके लिए कोई टिप्पणी करना ही रीता को जेल पहुंचा देता है ? आख़िर किस तरह से इस तरह की बातें जनता हज़म कर सकती है ? रीता की टिप्पणी को किसी भी तरह से उचित और शोभनीय नहीं कहा जा सकता है हर नेता को अपनी बात रखते समय गरिमा का ध्यान रखना चाहिए. जोशी को पकड़वाने और जेल भेजने में प्रदेश की पुलिस ने देर नहीं लगायी पर जोशी का घर दुनिया के सामने फूंकने वालों को आज तक यह सरकार बचाने के प्रयास ही करती रही है. राजनीति में गरिमा की बात और मायावती दोनों अलग अलग बातें हैं कई वर्ष पूर्व टीवी के सजीव प्रसारण में "गुंडा-गुंडी" जैसी अशालीन भाषा को पूरा देश देख चुका है जिसमें खुद माया भी शामिल थीं ?
                         बात अगर न्याय की हो तो यह सरकार कहीं से भी किसी भी स्तर पर कभी नहीं टिक पायी है. जोशी मामले में अभी भी सरकार का प्रयास है कि मामला यहीं पर दब जाए क्योंकि अगर यह आगे जाता है तो चुनाव के वर्ष में पुलिस अधिकारियों के घेरे में आने से यह सन्देश जनता तक चला जायेगा कि माया ने खुद अपने लिए सरकार का पूरा दुरूपयोग किया तो उनके विधायकों और मंत्रियों ने क्या किया होगा ? एक रिपोर्ट के अनुसार बसपा खुद अपने ५७ विधायकों के खिलाफ लगाये गए आरोपों की जांच कर रही है पर इस तरह की कवायद का क्या मतलब है जब सरकार कोई काम नियम से करना ही नहीं चाहती है ? सरकार के लिए कानून नहीं है और इसे केवल विपक्ष के लिए ही बचा कर रखा गया है ? अच्छा हो कि सरकार इस मामले में अपनी गलती स्वीकार कर ले और दोषी लोगों के खिलाफ कड़ी कार्यवाई करने की इच्छा भी दिखाए तभी जनता के दिल में उसकी कुछ जगह बन पायेगी वरना केवल अख़बारों में विज्ञापन देने से सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय नहीं हो जाया करता है ?            
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