मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

संसद की ज़िम्मेदारी

           जिस तरह से सरकार ने व्यापक विचार विमर्श करने के बाद लोकसभा में लोकपाल विधेयक को रखा है और सभी दलों ने मिलजुल कर इस पर विचार करने के लिए वर्तमान शीतकालीन सत्र को तीन दिनों के लिए बढ़ाने पर भी अपनी सहमति भी दे दी है तो इस अवसर का सही तरह से उपयोग भी किया जाना चाहिए. अब देश की संसद के सामने यह विकल्प आ गया है कि वह अपने पर लगने वाले निरर्थक आरोपों को सार्थक बहस करके मिटा दे जिससे आने वाले समय मेंकोई यह न कह सके कि जब देश को एक दिशा की ज़रुरत थी तो देश की संसद और राजनेताओं ने केवल अपने बारे में ही सोचा. अब इतने दिनों के मंथन और १० वीं बार प्रस्तुत होने पर लोकपाल विधेयक का जो स्वरुप संसद के सामने आया है तो बिना किसी भी तरह के अनावश्यक नए विवाद को हवा देते हुए अब इस पर ठोस बहस होनी चाहिए और विपक्षी दलों को भी अपने सभी संदेहों को बहस से मिटा देना चाहिए. ऐसा भी नहीं है कि सरकार ने जो लोकपाल संसद में रखा है वह इतना बेकार है कि उससे कुछ भी हासिल न किया जा सके पर साथ ही इसमें भी बहुत सारी कमियां भी हैं जिन पर विचार करने का अब सही समय आ गया है. जब संसद में इस बात पर चर्चा होनी है तो सभी को इस पर अपनी बात रखनी चाहिए. देश में जो ग़लत प्रक्रिया चल रही है कि विपक्षी दल संसद के बाहर तो बहुत बोलते हैं पर अन्दर जाने पर सार्थक बहस के स्थान पर हंगामे पर ध्यान देते हैं.
          अब सारी बात केवल सीबीआई को लोकपाल के अंतर्गत रखने पर भी केन्द्रित होने वाली है क्योंकि यह टीम अन्ना की सबसे बड़ी मांग है पर अभी तक जिस तरह का माहौल चल रहा है उसमें किसी भी तरह से यह नहीं कहा जा सकता है कि किसी अप्रत्याशित परिस्थति में लोकपाल देश को अस्थिर करने का काम भी कर सकता है क्योंकि अभी तक जो कुछ भी दिखाई दे रहा है उसमें किसी भी तरह से यह नहीं कहा जा सकता है कि कोई भी लोकपाल पद का दुरूपयोग नहीं कर सकता है ? अब समय है कि इन सारी बातों पर संसद में ही बहस की जाये जाये और अन्ना को भी इसमें जो कमियां लग रही हैं उन्हें बताने के लिए वे भी अपनी मांग को ठीक तरह से जनता और संसद के सामने रखें क्योंकि अब समय है कि इस बिल को किसी सार्थक जगह तक पहुँचाया जाये और इस बारे में केवल बातें करके ही काम न चलाया जाये देश को एक मज़बूत लोकपाल की ज़रुरत है पर साथ ही यह भी देखना ज़रूरी है कि कहीं यह लोकपाल देश की सर्वोच्च संसद की भी अवहेलना करने में सक्षम हो जाये ? अब सभी दलों को लोकपाल पर अन्ना की मांगों पर बिन्दुवार अपनी राय देनी ही होगी क्योंकि बिना इसके कोई सहमति नहीं बनाई जा सकती है केवल सरकार की आलोचना से सब कुछ नहीं किया जा सकता है आज भी अधिकांश दल अन्ना की मांगों के बारे में अपनी राय नहीं बना पाए हैं और वे अन्ना की सारी मांगों का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ना चाहते हैं ?
     अलग अलग दलों द्वारा अब तक जो बातें की जा रही थीं अब उनको संसद में सबके सामने रखने का समय आ गया है क्योंकि जब तक इन दलों की राय जनता और संसद के सामने नहीं आ पायेगी तब तक किसी भी स्थिति में यह जान पाना मुश्किल होता है कि देश का राजनैतिक तंत्र क्या चाहता है ? अब केवल आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति से बाहर आना चाहिए और इस मसले पर खुली बहस लोकसभा में होनी चाहिए जिससे यह पता चल पाए कि इस स्वरुप में अगर लोकपाल बनता है तो उससे क्या लाभ और क्या हानि होने वाली है जब इतने लम्बे मंथन के बाद इस तरह से एक स्वरुप सामने आ पाया है तो इसका पूरी तरह से लाभ उठाना चाहिए कोई भी व्यवस्था एक दम से नहीं बदली जा सकती है और अब यह सही समय है कि टीम अन्ना भी इस बात को समझे कि कानून बनाना संसद का काम है और किसी भी स्थिति में संसद के इस काम में कोई दख़ल नहीं दे सकता है. हो सकता है कि नेता कभी भी अन्ना के हिसाब से लोकपाल न बना पायें पर कुछ न होने के स्थान अपर अगर कोई पहल सामने आ रही है तो उसे स्वीकार कर लेना चाहिए जिससे आने वाले समय में इस रूप का आंकलन भी किया जा सके ? अब देश हित में सार्थक बहस और लोकपाल के स्वरुप को मानने के लिए सहमति बननी चाहिए और इस १० वें लोकपाल को कानून भी बनना चाहिए पर यह केवल एक दल पर निर्भर नहीं हो सकता है अब सभी को इसके लिए सोचना ही होगा.
 
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