बीते साल ३१ दिसंबर से लागू हुए यौन अपराध संशोधनों से अब मामले की सुनवाई २ माह में पूरी करने का प्रयास किया जायेगा. इसके साथ ही पीड़ित पक्ष को भी अपनी तरफ से अभियोजन करने की सुविधा भी रहेगी. अभी तक यह केवल राज्य की तरफ से दायर होने वाले पक्ष पर ही निर्भर करता था. साथ ही यह भी अधिकार दिया गया है कि किसी भी फैसले के खिलाफ सभी पक्षों को अपील करने की छूट भी होगी. साथ ही पीड़ित का बयान उसके घर में ही लिया जायेगा और जहाँ तक संभव हो सकेगा बयान के समय एक महिला पुलिस अधिकारी की उपस्थिति भी सुनिश्चित की जाएगी जो कि पीड़ित के अभिभावकों के सामने ही किसी सामाजिक कार्यकर्ता कि उपस्थिति में बयान दर्ज करेगी. चाहे जो भी हो रुचिका मामले से कम से कम सरकार ने इन बातों पर तो ध्यान दिया ही कि इस तरह के अपराधों में पीड़ित पक्ष की बात को भी ध्यान से सुना जाये. वैसे तो इस तरह के कई संशोधनों की दरकार हमारे कानून को है पर चलो कहीं से एक शुरुवात तो हो हुई गयी है जो आगे चलकर ऐसे ही बहुत सारे संशोधनों के माध्यम से न्याय दिलाने में कानून की मदद कर सकने में समर्थ होगी. संशोधनों के अनुसार बयानों को दृश्य श्रव्य माध्यमों से भी दर्ज करने का प्रयास किया जायेगा जिससे साक्ष्यों में किसी प्रकार के हेर फेर की गुंजाईश न रह जाये. फिल हल सरकार के इस कदम को देर से उठाया गया सही कदम तो कहा ही जा सकता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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