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रविवार, 21 दिसंबर 2008

नेता नगरी और हम...

राजनीति नेता मेरा मनपसंद विषय ... क्या किया जाए इन लोगों का ? जब भी ये बात करते हैं तो लगता है कि इनसे अधिक नियम कानून से चलने वाला शायद ही कोई इस देश दुनिया में हो .. आज की हकीक़त सभी जानते हैं कि पैसे से ही टिकट दिए और लिए जाते हैं ... पर कोई इस बात पर कभी ध्यान नहीं देता कि जब ये नेता २-४ करोड़ रूपये देकर टिकट लायेंगें तो जीतने के बाद किस तरह से देश और समाज की सेवा करेंगे? ये देश के दमन पर एक बदनुमा धब्बा हैं क्योंकि चंद लोगों ने आज समाज सेवा के इस कार्य को पेशा बना दिया है. पता नहीं कितने लोग इस बात से सहमत होंगे कि अब समय आ गया है कि चुनाव पार्टी के आधार पर होने चाहिए न कि उम्मीदवार के आधार पर. इस व्यवस्था से सबसे पहले तो समाज की जाति वादी राजनीति समाप्त हो जायेगी. जब किसी को पता ही नहीं होगा कि कौन सा व्यक्ति किस बिरादरी से चुनाव मैदान में है तो कैसे जाति आधारित राजनीति आगे आ पायेगी. आज देश की आवश्यकता है कि हम सभी इन सुधारों के बारे में सरकारों पर दबाव बनाना सीखें. आख़िर लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है ये बात तो मुंबई के बाद साबित हो गई है. इस बार के अप्रत्याशित दबाव ने सरकार को तेज़ी से काम करने पर मजबूर कर ही दिया और देश ने पहली बार कुछ इतनी जल्दी होता हुआ देखा भी है... जागो भारत के सपूतों अब तो जाग जाओ कब तक सोये रहोगे ? कहीं ऐसा न हो कि ये नेता इस देश को रहने लायक ही न छोडें ? अब समय आ गया है कि सवाल पूछे जाने चाहिए और केवल झूठे आश्वासन देने वालों से हमें स्वयं ही पीछा छुडा लेना चाहिए. आज देश कुछ ठोस मांग रहा है अगर वादों के झुनझुने से हम इस तरह ही अपने को दिलासा देते रहे तो एक दिन हमें कोई दिलासा भी काम नहीं कर पायेगा.

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